SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 417
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पेज्जदोसविहत्ती १ सकारस्स कधमागमववएसो ? ण तत्थ वि भूदपुव्वगईए आगमववएसुववत्तीदो । णोआगमदो दव्वपेचं तिविहं जाणुगसरीर-भविय-तव्वदिरित्तमेएण | जाणुगसरीरदव्वपेजं तिविहं भविय-वहमाण-समुज्झादमेएण । होदु णाम वट्टमाणसरीरस्स पेजागमववएसो; पेजागमेण सह एयत्तुवलंभादो, ण भविय-समुज्झादाणमेसा सण्णा; पेजपाहुडेण संबंधाभावादो त्तिण एस दोसोदव्वट्टियणयप्पणाए सरीरम्मि तिसरीरभावेण एयत्तमुवगयम्मि तदविरोहादो। भाविदव्वपेजं भविस्सकाले पेजपाहुडजाणओ । एसो वि णिक्खेवो दव्वष्टियणयप्पणाए जुञ्जदि त्ति । उववत्ती पुव्वं व वत्तव्वा । तव्वदिरित्तणोआगमदव्वपेजं दुविहं कम्मपेजं णोकम्मपेजं चेदि । तत्थ कम्मपेज सत्तविहं इत्थिसम्बन्धसे पेजविषयक श्रुतज्ञानके उपयोगसे रहित जीवके भी आगम संज्ञा बन जाती है। शंका-जिसका आगमजनित संस्कार भी नष्ट हो गया है उसे आगम संज्ञा कैसे दी जा सकती है ? समाधान-नहीं, क्योंकि जिसका आगमजनित संस्कार नष्ट हो गया है ऐसे जीवमें भी भूतपूर्वप्रज्ञापननयकी अपेक्षा आगम संज्ञा बन जाती है। ज्ञायकशरीर, भावि और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे नोआगमद्रव्यपेज तीन प्रकारका है। ज्ञायकशरीरनोआगमद्रव्यपेज भावि, वर्तमान और अतीतके भेदसे तीन प्रकारका है । शंका-वर्तमान शरीरकी नोआगमद्रव्यपेज संज्ञा होओ, क्योंकि वर्तमान शरीरका पेज्जागम अर्थात् पेज विषयक शास्त्रको जाननेवाले जीवके साथ एकत्व पाया जाता है। परन्तु भाविशरीर और अतीतशरीरको नोगमद्रव्यपेज संज्ञा नहीं दी जा सकती है, क्योंकि इन दोनों शरीरोंका पेज्जागमके साथ सम्बन्ध नहीं पाया जाता है ? समाधान-यह दोष उचित नहीं है, क्योंकि द्रव्यार्थिकनयकी दृष्टिसे भूत,भविष्यत् और वर्तमान ये तीनों शरीर शरीरत्वकी अपेक्षा एकरूप हैं, अतः एकत्वको प्राप्त हुए शरीर में नोआगमद्रव्यपेज्ज संज्ञाके मान लेने में कोई विरोध नहीं आता है। जो भविष्यकालमें पेज्जविषयक शास्त्रको जाननेवाला होगा उसे भाविनोआगमद्रव्यपेज्ज कहते हैं। यह निक्षेप भी द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षासे बनता है, इसलिये जिसप्रकार भावि और भूत शरीरमें शरीरसामान्यकी अपेक्षा वर्तमान शरीरसे एकत्व मानकर नोआगमद्रव्यपेज्ज संज्ञाका व्यवहार किया है उसीप्रकार वर्तमान जीव ही भविष्यमें पेज्जविषयक शास्त्रका ज्ञाता होगा; अतः जीवसामान्यकी अपेक्षा एकत्व मानकर वर्तमान जीवको भावि नोआगमद्रव्यपेज्ज कहा है। ___ कर्मपेज्ज और नोकर्मपेज्जके भेदसे तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यपेज्ज दो प्रकारका है। उनमेंसे कर्मतद्वयतिरिक्तनोआगमद्रव्यपेज स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, माया (७० १२ ) ण च ता०, स० । -पयासिमवदिरित्तभेदेण ण च भ०, मा० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy