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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पेज्जदोसविहती १ १६७. अहिमुहस्स अप्पाणम्मि पडिबद्धस्स वाहरणं कहणं अभिवाहरणं णाम, तेण णिप्पण्णं अभिवाहरणणिप्पण्णं । तं किं ? पेजदोसपाहुडं । तं जहा, पेजेसही पेज चैव भणदि; तत्थ पडिबद्धत्तादो, ण दोस; तेण तस्स पडिबंधाभावादो । दोससद्दो वि दोसहं चैव भणदि पडिबंधकारणादो, ण पेजट्ठे; तेण तस्स पडिबंधाभावादो । तदो पेजदोसा बे विण एक्केण सद्देण भण (ण्णं) ति, भिण्णेसु दोसु अत्थेसु एकस्स सदस्स एगसहावस वृत्तिविरोहादो। ण च दोसु अत्थेसु एगो सद्दो पडिबद्धो होदि; अणेगाणं सहावाणं एत्थम्मि असंभवादो। संभवे वा ण सो एगत्थो; विरुद्धधम्मज्झासेण पत्ताणेगभावादो । तदो पेजदोससद्दा बे वि पउंजेयव्वा, अण्णहा सगसगट्टाणं परूवणाणुवदोनों नामोंमेंसे पेज्जदोषप्राभृत यह नाम अभिव्याहरणसे निष्पन्न हुआ है । $ १६७. अभिमुख अर्थका अर्थात् अपनेमें प्रतिबद्ध हुए अर्थका व्याहरण अर्थात् कहना अभिव्याहरण कहलाता है। उससे उत्पन्न हुए नामको अभिव्याहरणनिष्पन्न नाम कहते हैं । शंका- वह अभिव्याहरणनिष्पन्न नाम कौनसा है ? समाधान - पेज्जदोषप्राभृत यह नाम अभिव्याहरणनिष्पन्न है । १६८ उसका स्पष्टीकरण इसप्रकार है-पेज्जशब्द पेज्जरूप अर्थको ही कहता है, क्योंकि पेज्जशब्द पेज अर्थ में ही प्रतिबद्ध है । किन्तु पेज्जशब्द दोषरूप अर्थको नहीं कहता है, क्योंकि दोषरूप अर्थके साथ पेज्जशब्द प्रतिबद्ध नहीं है । उसीप्रकार दोषशब्द भी दोषरूप अर्थको ही कहता है, क्योंकि दोषशब्द दोषरूप अर्थके साथ प्रतिबद्ध है । किन्तु दोषशब्द पेज्जरूप अर्थको नहीं कहता है, क्योंकि पेज्जरूप अर्थके साथ दोषशब्द प्रतिबद्ध नहीं है। अतएव पेज्ज और दोष ये दोनों ही पेज्ज और दोष इन दोनों शब्दों में से किसी एक शब्द के द्वारा नहीं कहे जा सकते हैं, क्योंकि भिन्न दो अर्थों में एक स्वभाववाले एक शब्दकी प्रवृत्ति माननेमें विरोध आता है। यदि कहा जाय कि दो अर्थोंमें एक शब्द प्रतिबद्ध होता है सो भी कहना ठीक नहीं है, क्योंकि एक अर्थ में अनेक स्वभाव नहीं पाये जाते हैं अर्थात् शब्दरूप अर्थमें भी अनेक स्वभाव नहीं हो सकते हैं । यदि अनेक स्वभाव एक अर्थ में संभव हैं ऐसा माना जाय तो वह अर्थ एक नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि विरुद्ध अनेक धर्मोका आधार हो जानेसे वह अर्थ अनेकपनेको प्राप्त हो जाता है। अतएव पेज और दोष इन दोनों ही शब्दों का प्रयोग करना चाहिये, अन्यथा अपने अपने अर्थोंकी प्ररूपणा नहीं हो सकती है अर्थात् दोनोंमेंसे किसी एक शब्दका प्रयोग करने पर दोनों अर्थोंका कथन नहीं बन सकता है । विशेषार्थ - अर्थानुसारी नाम अभिव्याहरणसे उत्पन्न हुआ नाम कहलाता है । जिस शब्दका जो वाच्य है वही वाच्य जब उस शब्द के द्वारा कहा जाता है अन्य नहीं, तब उसका (१) पेज्जं दोसं अ० । पेजदोस आ० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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