SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे सायपाहुड [ पेज्जदोसविहत्ती १ उपशामना नामक चौदहवें अधिकारमें आठ गाथाएं और क्षपणा नामक पन्द्रहवें अधिकारमें अट्ठाईस गाथाएं आई हैं । इस कथनसे गुणधर भट्टारकको इष्ट प्रारंभके पांच अधिकारों के नामोंको छोड़ कर शेष दस अधिकारोंके नाम भी प्रकट हो जाते हैं । केवल प्रारंभके पांच अधिकारोंके नामोंकी स्पष्ट सूचना नहीं मिलती है। गुणधर भट्टारकने प्रारंभके पांच अधिकारोंके नामोंके संबन्धमें 'पेजदोसविहत्ती हिदिअणुभागे य बंधगे चेय' केवल इतना ही कहा है। इस गाथांशसे पेज्जदोषविभक्ति, स्थिति, अनुभाग और बन्धक इसप्रकार केवल चार नामोंका संकेतमात्र मिलता है पर यह नहीं मालूम पड़ता है कि प्रारंभके पांच अधिकारोंमेंसे कौन अधिकार किस नामवाला है। यही सबब है कि प्रारंभके पांच अधिकारोंकी चर्चा करते हुए वीरसेनस्वामीने दो तीन विकल्प सुझाये हैं जिनकी चर्चा ऊपर की जा चुकी है। पर इतना स्पष्ट है कि गुणधर भट्टारकने पेजदोसविहत्ती' इत्यादि गाथाके पूर्वार्धद्वारा प्रारंभके पांच अधिकारोंकी सूचना दी है जिसकी पुष्टि 'तिण्णेदा गाहाओ पंचसु अत्थेसु णादव्वा' इस गाथांशसे होती है । 'पेजदोसविहत्ती' इत्यादि जिन दो गाथाओंमें पन्द्रह अधिकारोंके नाम गिनाये हैं उनमें अन्तिम पद 'अद्धापरिमाणणिदेसो य' होनेसे पन्द्रहवां अर्थाधिकार अद्धापरिमाणनिर्देश नामका होना चाहिये ऐसा कुछ आचार्योंका मत है । पर जिन एकसौ अस्सी गाथाओंमें पन्द्रह अर्थाधिकारोंका वर्णन करनेकी प्रतिज्ञा की है उनमें अद्धापरिमाणनिर्देशका वर्णन करनेवाली छह गाथाएं नहीं आई हैं तथा पन्द्रह अधिकारोंमें गाथाओंका विभाग करते हुए गुणधर भट्टारकने स्वयं इस प्रकारकी सूचना भी नहीं दी है। इससे प्रतीत होता है कि स्वयं गुणधर भट्टारकको पन्द्रहवां अधिकार अद्धापरिमाणनिर्देश इष्ट नहीं था। इसप्रकार उपर्युक्त पन्द्रह अधिकार गुणधर भट्टारकके अभिप्रायानुसार समझना चाहिये । पर यतिवृषभ आचार्य इन पन्द्रह अधिकारोंके नामोंमें परिवर्तन करके अन्य प्रकारसे पन्द्रह अधिकार बतलाते हैं। यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि यतिवृषभ स्थविरने पन्द्रह अधिकारोंका नामनिर्देश करते समय 'पेजदोसविहत्ती' इत्यादि जिन दो गाथाओंमें पन्द्रह अधिकारोंके नामोंकी सूचना दी है उन दो गाथाओंका अनुसरण तो किया पर जिन संबन्धगाथाओं द्वारा किस अधिकारमें कितनी गाथाएं आईं हैं यह बताया है उनका अनुसरण नहीं किया। गुणधर भट्टारकने 'पेज्जदोसविहत्ती' इत्यादि गाथाके पूर्वार्ध द्वारा पाँच अधिकारोंकी सूचना की है। यतिवृषभ आचार्य उक्त गाथाके शब्दोंका अनुसरण करते हुए उसके पूर्वार्धसे यदि पाँच ही अधिकार कहते तो वह गुणधर भट्टारकका ही अभिप्राय समझा जाता । पर उक्त गाथामें जो पाँच अधिकारोंकी सूचना है उन्होंने उसका अनुसरण नहीं किया। वे गाथाके पूर्वार्धके शब्दोंका अनुसरण तो करते हैं पर उसके द्वारा केवल चार अधिकारोंके निर्देशकी सूचना करते हैं। और इसप्रकार अधिकारोंके नामनिर्देशके संबन्धमें यतिवृषभ स्थविरका अभिप्राय गुणधर भट्टारकके अभिप्रायसे भिन्न हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy