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गा० १३-१४ ]
त्थाहियारणिसो
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$ १५०. 'अण्णेण पयारेण वुच्चदि' त्ति एत्थ अज्झायारो कायव्वो । गुणहरभडारएण पण्णारससु अत्थाहियारेसु परूविदेसु पुणो जइवसहाइरियो पण्णारस अत्थाहियारे अण्णेण पयारेण भणतो गुणहरभडारयस्स कथं ण दूसओ ? ण च गुरूणमच्चासणं कुतो सम्माट्ठी हो; विरोहादो ।
६१५१. एत्थ परिहारो बुच्चदे | अण्णेण पयारेण पण्णारस अत्थाहियारे भणतो वि संतो ण सो तस्स दूसओ, तेण वृत्तअत्थाहियाराणं पडिसेहमकाऊण तदहिप्पायंतरपरूवयत्तादो | गुणहरभडारएण पण्णारसअत्थाहियाराणं दिसा दरिसदा, तदो गुणहरभडारयमुहविणिग्गय-अत्याहिया रेहि चेव होदव्वमिदि नियमो णत्थि त्ति तण्णियमाभावं दरिसतेण जइवसहाइरिएण पण्णारस अत्थाहियारा अण्णेण पयारेण भणिदा, तेण ण सो तस्स दूसओ ति भणिद होदि ।
* तं जहा, पेज्जदोसे १ ।
$ १५२. पेज्जदोसे एगो अत्थाहियारो । कथमेत्थ एगवयणणिदेसो ? ण; पेज्ज$१५०. इस सूत्र में 'अन्य प्रकारसे कहते हैं' इतने पदका अध्याहार कर लेना चाहिये । शंका-गुणधर भट्टारकके द्वारा कहे गये पन्द्रह अर्थाधिकारोंके रहते हुए उन्हीं पन्द्रह अर्थाधिकारोंका अन्य प्रकार से प्ररूपण करनेवाले यतिवृषभाचार्य गुणधर भट्टारक के दोष दिखानेवाले कैसे नहीं होते हैं ? और जो गुरुओं को दोष लगाता है वह सम्यग्दृष्टि नहीं हो सकता है, क्योंकि दोष भी लगावे और सम्यग्दृष्टि भी रहे, इन दोनों बातोंमें परस्पर विरोध है ।
$१५१. समाधान - अब यहाँ उपर्युक्त शंकाका समाधान करते हैं । अन्य प्रकारसे पन्द्रह अर्थाधिकारोंका प्रतिपादन करते हुए भी यतिवृषभ आचार्य गुणधर भट्टारकके दोष प्रकट करनेवाले नहीं हैं। क्योंकि गुणधर भट्टारक के द्वारा कहे गये अर्थाधिकारोंका प्रतिषेध नहीं करके उनके अभिप्रायान्तरका यतिवृषभ आचार्यने प्ररूपण किया है । गुणधर भट्टारकने पन्द्रह अर्थाधिकारोंकी दिशामात्र दिखलाई है, अतएव गुणधर भट्टारकके मुख से निकले हुए अधिकार ही होना चाहिये ऐसा कोई नियम नहीं है, इसप्रकार उस नियमाभावको दिखलाते हुए यतिवृषभाचार्यने पन्द्रह अर्थाधिकार अन्य प्रकारसे कहे हैं । इसलिये यतिवृषभाचार्य गुणधर भट्टारक के दोष प्रकट करनेवाले नहीं हैं । यह उक्त कथनका तात्पर्य समझना चाहिये ।
* वे पन्द्रह अर्थाधिकार आगे लिखे अनुसार हैं । उनमें से पहला पेज्जदोष अधिकार है १ ।
$१५२. यतिवृषभ आचार्यके द्वारा कहे गये पन्द्रह अर्थाधिकारोंमें पहला पेज्जदोष (१) अणेण आ० । (२) वृत्तअहिया - आ० ।
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