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________________ १७४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पेजदोसविहत्ती ? चत्तारि भासगाहाओ ४ । ओवट्टणाए तिण्हं मूलगाहाणं भासगाहाओ परूविदाओ। ११४२. किट्टीए एक्कारस मूलगाहाओ। तत्थ 'केवडिया किट्टीओ०' एसो पढममूलगाहा । एदिस्से तिण्णि भासगाहाओ। ताओ कदमाओ ? 'बारस-णव-छतिण्णि य किट्टीओ होति.' एस गाहा प्पहुडि जाव 'गुंणसेढिअणंतगुणा लोभादी०' एस गाहे त्ति ताव तिण्णि भासगाहाओ ३। 'कैदिसु अ अणुभागेसु अ०' एदिस्से विदियमूलगाहाए बे भासगाहाओ। ताओ कदमाओ ? 'किट्टी च हिदिविसेसेसु' एस गाहा पहुडि जाव 'सव्वाओ किट्टीओ विदियहिदीए०' एस गाहेत्ति ताव बेण्णि भासगाहाओ २। 'किट्टी च पदेसग्गेणाणुभागग्गेण का च कालेण.' एदिस्से तदियमूलगाहाए तिण्णि अत्था होति । तत्थ 'किट्टी च पदेसग्गेण०' एदम्मि पढमे अत्थे पंच भासगाहाओ। ताओ कदमाओ? विदियोदो पुण पढमा०' एस गाहा पहडि जाव 'एसोकमो य कोहे०' एस गाहेत्ति ताव पंच भासगाहाओ ५ । 'अणुंभागग्गेण' इत्ति एदम्मि विदिए अत्थे एकभासगाहा । सा कदमा? 'पढमा य अणंतगुणा विदियादो०' एस गाहा एक्का चेव१। 'का च कालेण' इत्ति एदम्मि तदिए अत्थे छब्भासगाहाओ । ताओ कदमाओ ? 'पढमसमयकिट्टीणं कालो०' एस गाहा प्पहुडि जाव 'वेदयकालो किट्टी य.' हैं । इसप्रकार अपवर्तनामें आई हुई तीन मूल गाथाओंकी भाष्यगाथाओंका प्ररूपण किया। १४२. कृष्टिमें ग्यारह मूल गाथाएं हैं। उनमेंसे 'केवडिया किट्टीओ०' यह पहली मूल गाथा है । इसकी तीन भाष्यगाथाएं हैं । वे कौनसी हैं ? 'बारस णव छ तिण्णि य किट्टीओ होंति०' इस गाथासे लेकर 'गुणसेढि अणंतगुणा लोभादी०' इस गाथा तक तीन भाष्यगाथाएं हैं। 'कदिसु अ अणुभागेसु अ०' कृष्टिसंबन्धी इस दूसरी मूलगाथाकी दो भाष्यगाथाएं हैं। वे कौनसी हैं ? 'किट्टी च हिदिविसेसेसु०' इस गाथासे लेकर 'सव्वाओ किट्टीओ विदियहिदीए.' इस गाथा तक दो भाष्यगाथाएं हैं। 'किट्टी च पदेसग्गेण अणुभागग्गेण का च कालेण०' कृष्टिसंबन्धी इस तीसरी मूलगाथाके तीन अर्थ होते हैं। उनमेंसे 'किट्टी च पदेसग्गेण' इस पहले अर्थ में पांच भाष्यगाथाएं हैं। वे कौनसी हैं ? 'विदियादो पुण पढमा०' इस गाथासे लेकर 'एसो कमो य कोहे.' इस गाथा तक पांच भाष्यगाथाएं हैं। 'अणुभागग्गेण' इस दूसरे अर्थमें एक भाष्यगाथा है। वह कौनसी है ? 'पढमा य अणंतगुणा विदियादो०' यह एक ही गाथा है। 'का च कालेण' इस तीसरे अर्थमें छह भाष्यगाथाएँ हैं। वे कौनसी हैं ? 'पढमसमयकिट्टीणं कालो०' इस गाथासे लेकर 'वेदय (१) सूत्रगाथाङ्कः १६२। (२) एस पढ-आ० । (३) सूत्रगाथाङ्कः १६३ । (४) सूत्रगाथाङ्कः १६५। (५) सूत्रगाथाङ्कः १६६ । (६) सूत्रगाथाङ्कः १६७। (७) सूत्रगाथाङ्कः १६८ । (८) सूत्रगाथाङ्कः १६९ । (8) सूत्रगाथाङ्कः १७० । (१०) सूत्रगाथाङ्कः १७४ । (११) सूत्रगाथाङ्कः १७५ । (१२) सूत्रगाथाङ्कः १७६ । (१३) सूत्रगाथाङ्कः १८१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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