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________________ शुद्धिपत्र पृष्ठ पंक्ति १४ ३४ १०४ ११२ १२२ १२८ १४६ १५५ १५६ १६७ १७५ २०० २३२ २३३ २५९ २६२ २७९ २८० अशुद्धि शुद्धि वस्तुमे पेज्ज वस्तुमें तीसरा पेज्जसमासं तभू समासंतभू पहिग्रह परिग्रह वदामि वंदामि इन इसलिये इसलिये इन तथा किन्हींके तथा किन्हीं अपकर्प अपकर्ष इस शंका इस शंकाका संकाभेदि संकामेदि कर्मबन्धके ग्रहणकी अपेक्षा संक्तम अकर्मबन्धके ग्रहणकी अपेक्षा बन्ध इन गाथाओंका इन उपअधिकारोंकी गाथाओंका षद्धाणि' बद्धाणि' एदन्तरङ्गनय एतदन्तरङ्गनयप्रदेशयत्व प्रदेशवत्त्व और सर्वथा और न सर्वथा सुत्तमुच्चरिय सुत्तमुच्चारिय (स०) निक्षेपको करता है। निक्षेपको स्वीकार करता है। वाचकभावसे वाच्य रूपसे उपभोगका उपभोगको अब्ववत्थावत्तीदो। अव्ववत्थावत्तीदो। क्कदिदर्थे क्वचिदर्थे उत्पन्न उत्पन्न घडावण? घडावणलैं कसायकरसाणि कसायरसाणि पेज्जपाहुड और दोषपाहुडका पेज्जदोषपाहुडका इससे जाता है इससे जाना जाता है खुद्धभवग्गहणं खुद्दभवग्गहणं ।१३४ ॥ ॥ १३५ ।। ॥१३७॥ ॥ १३६ ॥ ॥ १३८॥ ॥ १३७॥ ॥ १३९॥ ॥ १३५॥ ॥ १३७॥ ॥१३६॥ ।। १३८॥ अनुभव रूप है अनुभय रूप है पेज्ज वा (३) पेज वा * किस नयकी किस नयकी क्रोधात्प्रीतिविनाशं "क्रोधात्प्रीतिविनाशं चेब २९१ २९३ २९५ ३०८ ३१४ ३२८ ३३३ ३४५ ३५१ ११ ८,२० ३५२ ३५२ ३५६ ३६४ ३७८ चेव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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