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________________ विषयसूची को " मङ्गलाचरण व प्रतिज्ञा १-४ | श्रुतज्ञानका स्वरूप चन्द्रप्रभजिनको नमस्कार श्रुतज्ञानके भेद चौबीस तीर्थंकरको , अंगबाह्यके भेद वीर जिनको अंगप्रविष्टके भेद श्रुतदेवीको दृष्टिवादके भेद गणधरको पूर्वगतके भेद और उनकी वस्तुएं गुणधर भट्टारकको प्रानुपूर्वीके तीन भेद आर्यमंक्षु नागहस्तिको ,, तीनों आनुपूर्वियोंका स्वरूप यतिवृषभको तीनों प्रानपूवियोंकी अपेक्षा कसायपाहुडके चूणिसूत्र सहित कसायपाहुडके व्याख्यानकी प्रतिज्ञा ,, योनिभूत श्रुतज्ञानके क्रमांकका विचार मङ्गलवाद श्रुतके भेद-प्रभेदोंमें कसायपाहुड जिससे आ० गुणधर और यतिवृषभने मङ्गल नहीं निकला है, उसका क्रमाङ्कविचार किया इसका कारण नामके छह भेद कृति आदि चौबीस अनुयोगद्वारों के आदिमें गौण्णपदका स्वरूप और उदाहरण गौतम गणधरने मङ्गल क्यों किया इसका नोगौण्यपदके उदाहरण और उसमें हेतु आदानपदके उदाहरण और उसमें हेतु कारण तथा इससे मङ्गल करने और न ज्ञानी आदि नाम भी आदानपद क्यों हैं करने के विषय में प्रा० गुणधरका जो प्रतिपक्षपदके उदाहरण और उसमें हेतु अभिप्राय फलित हआ इसका निर्देश उपचयपदके उदाहरण और उसमें हेतु कसायपाहुडकी पहली गाथा १०-१५१ अपचयपदके उदाहरण और उसमें हेतु पहली गाथा का अर्थ प्राधान्यपद नामोंका अन्तर्भाव एकमें उत्पाद्य-उत्पादकभाव संयोगपदनामोंका अन्तर्भाव नामोपक्रमका समर्थन अवयवपदनामोंका अन्तर्भाव शेष उपक्रमोंका समर्थन शकनासा आदि नाम नहीं हैं, इसका खुलासा चूर्णिसूत्रोंमे उपक्रमोंका निर्देश अनासिद्धान्तपदनामोंका अन्तर्भाव उपक्रमका अर्थ प्रमाणपदनामोंका अन्तर्भाव श्रुतस्कन्धका प्ररूपण अरविन्द शब्दकी अरविन्दसंज्ञाका अनादिज्ञानके पांच भेद सिद्धान्तपदनामोंमें अन्तर्भाव मतिज्ञानका स्वरूप और भेद पेज्जदोसपाहड और कसायपाहड इन नामोंका अवधिज्ञानका स्वरूप किन नामपदोंमें अन्तर्भाव होता है अवधिको मनःपर्ययसे पहले रखने में हेतु | प्रमाणके सात भेद और निरुक्ति अवधिज्ञानके भेद नामप्रमाण मनःपर्ययज्ञानका स्वरूप स्थापनाप्रमाण मनःपर्ययज्ञानके भेद संख्याप्रमाण केवलज्ञानका स्वरूप द्रव्यप्रमाण ज्ञानोंमें प्रत्यक्ष-परोक्ष व्यवस्था २४ , मापे गये गेहूँ आदि द्रव्यप्रमाण क्यों नहीं हैं ? ,, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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