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________________ चित्रपरिचय १ इस चित्रमें सात ताड़पत्र हैं। जिनमें से ऊपरसे नीचेकी ओर पहला, दूसरा और तीसरा ताड़पत्र श्रीधवलग्रन्थराजका है, चौथा और छठा ताड़पत्र श्रीमहाधवल ग्रन्थराजका है, तथा पाँचवाँ ताड़पत्र श्रीजयधवलग्रन्थका है। इस पत्रके बीचमें कनाडोका हस्तलेख तथा आजुवाजू चित्र हैं। २ ये मूडबिद्रीके स्वर्गीय भट्टारक श्री चारुकीर्तिस्वामी हैं। आप संस्कृतके अच्छे ज्ञाता थे, तथा अन्य अनेक भाषाओंके भी जानकार थे। आपने कितने ही मन्दिरोंका जीर्णोद्धार कराया व पंच कल्याणादि कराये । आपके ही समयमें श्रीधवल और जयधवलकी प्रतिलिपियाँ हुई थीं-और तीसरे सिद्धान्तग्रन्थ महाधवलकी प्रतिलिपिका कार्य भी प्रारम्भ हो गया था। ३ ये मूड़विद्रीके वर्तमान भट्टारक श्रीचारुकीर्तिस्वामी हैं। आप अनेक भाषाओं के ज्ञाता हैं। आपके ही समयमें श्रीमहाधवलकी प्रतिलिपि पूर्ण हुई। आपके ही उदार विचारोंका यह सुफल है कि यहांकी पंचायत द्वारा श्रीमहाधवलकी प्रतिलिपि जिज्ञासु समाजको प्राप्त हो , सकी है। तथा श्रीधवल और जयधवल सिद्धान्तग्रन्थोंके संशोधन और प्रकाशन कार्यमें आपकी ओरसे पूरी सहायता मिल रही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001407
Book TitleKasaypahudam Part 01
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Mahendrakumar Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1944
Total Pages572
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Karma, H000, & H999
File Size14 MB
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