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________________ वेयण अप्पा बहुगाणियोगद्दार वेयणअप्पाबहुए ति ॥ १ ॥ सुगमं । तत्थ इमाणि तिणि अणियोगद्दाराणि णादव्वाणि भवतिपडदा समयबद्धदा खेत्तपच्चासए त्ति ॥ २ ॥ एवं तिणि चैव एत्थ अणियोगद्दाराणि होंति, अण्णेसिमसंभवादो । अदाए सव्वत्थोवा गोदस्स कम्मस्स पयडीओ ॥ ३ ॥ कुदो दोपरिमाणत्तादो' | वेणीयस्स कम्मस्स पयडीओ तत्तियायो चेव ॥ ४ ॥ सादासादमेएण दुब्भावुवलंभादो । आउ कम्मस्स पयडीओ संखेजगुणाओ ॥ ५ ॥ को गुणगारो ? दो वाणि । अंतराइयस्स कम्मस्स पयडीओ विसेसाहियाओ ॥ ६ ॥ केन्तियमेत्तेण ? सगचदुब्भागमेत्तेण । मोहणीयस्स कम्मस्स पयडीओ संखेजगुणाओ ॥ ७ ॥ गुणगारो ? - पंचभागूणछरुवाणि । वेदना अल्पबहुत्वका अधिकार है ॥ १ ॥ यह सूत्र सुगम है । उसमें ये तीन अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं - प्रकृत्यर्थता, समयप्रबद्धार्थता और क्षेत्रप्रत्यास ॥ २ ॥ इस प्रकार यहाँ तीन ही अनुयोगद्वार हैं, क्योंकि इनसे अन्य अनुयोगद्वारोंकी यहाँ सम्भावना नहीं है । प्रकृत्यर्थताकी अपेक्षा गोत्र कर्मकी प्रकृतियाँ सबसे स्तोक हैं || ३ || क्योंकि, वे दो अङ्क प्रमाण हैं । वेदनीय कर्म की भी उतनी ही प्रकृतियाँ हैं ॥ ४ ॥ क्योंकि, साता व असाताके भेदसे उनकी भी दो संख्या पायी जाती है। आयु कर्मको प्रकृतियाँ उनसे संख्यातगुणी हैं ॥ ५ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार दो का अक है । Jain Education International - अन्तराय कर्मकी प्रकृतियाँ उनसे विशेष अधिक हैं ॥ ६ ॥ कितने मासे वे अधिक हैं ? वे अपने चतुर्थ भाग मात्रसे अधिक हैं । मोहनीय कर्मकी प्रकृतियाँ उनसे संख्यातगुणी हैं ॥ ७ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार दो बटे पाँच (ब) भागसे कम छह अङ्क है ( ५x५६ = २८ )। १ - श्राकाप्रतिषु 'कुदो परिमाणत्तादो' इति पाठः । २ श्राकाप्रतिषु ' तत्तियो' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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