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________________ ५०६] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, १५, १३. असंखेज्जरूवोवलंभादो । एवं समयपबद्धहदा समत्ता। खेत्तपञ्चासे ति ॥ १३॥ एदमहियारसंभालणवयणं । ... णाणावरणीयस्स कम्मस्स एकेका पयडी जो मच्छो जोयणसहस्सियो सयंभुरमणसमुदस्स बाहिरिल्लए तडे अच्छिदो, वेयणसमुग्धादेण समुहदो, काउलेस्सियाए लग्गो, पुणरवि मारणंतियसमुग्धादेण समुहदो, तिण्णि विग्गहकंडयाणि काऊण से काले अधो सत्तमाए पुढवीए णेरइएसु उववजिहदि ति खेत्तपञ्चासएण' गुणिदाओ सव्वपयडीणं केवडिओ भागो॥ १४ ॥ जो मच्छो उववज्जिहदि त्ति एदेण खेत्तपच्चासो परूविदो । एदेण खेत्तपच्चासएण गुणिदाओ समयपबद्धट्ठदाओ पयडीओ णाणावरणीयस्स कम्मस्स एकेका पयडी एवदिया होदि । पुणो एवंविहाओ गाणावरणीयस्स कम्मस्स पयडीओ सव्वपयडीणं केवडिओ भागो त्ति सुत्तसंबंधो कायव्यो । सेसं सुगम । दुभागो देसूणो ॥१५॥ देनेपर असंख्यात अंक पाये जाते हैं। इस प्रकार समप्रबद्धार्थता समाप्त हुई। क्षेत्रप्रत्यास अनुयोगद्वारका अधिकार है ॥ १३ ॥ यह सूत्र अधिकारका स्मरण करानेवाला है। - ज्ञानावरण कर्मकी एक एक प्रकृति-जो मत्स्य एक हजार योजन प्रमाण अवगाहनासे युक्त होता हुआ स्वम्भूरमण समुद्र के बाहिरी तटपर स्थित है, वेदनासमुद्: घातको प्राप्त है, काकलेश्यासे संलग्न है, फिरसे मारणान्तिकममुद्घातसे समुद्घातको प्राप्त है, तीन विग्रहकाण्डकोंको करके अनन्तर समयमें नारकियों में उत्पन्न होगा, इस क्षेत्रप्रत्याससे समयप्रबद्धार्थताप्रकृतियोंको गुणित करनेपर जो प्राप्त हो उतनी होती है। ये प्रकृतियां सब प्रकृतियोंके कितने भाग प्रमाण हैं ॥ १४ ॥ - 'जो मच्छो' यहाँसे लेकर 'उववजिहदि' तक इस सूत्रद्वारा क्षेत्रप्रत्यासकी प्ररूपणा की गई है। इस क्षेत्रप्रत्याससे गुणित समयप्रबद्धार्थता प्रकृतियाँ जितनी होती हैं इतनी मात्र ज्ञानावरणीय कर्मकी एक एक प्रकृति होती है। इस प्रकारकी ज्ञानावरणीय प्रकृतियाँ सब प्रकृतियोंके कितने भाग प्रमाण हैं, ऐसा सूत्रका सम्बन्ध करना चाहिये। शेष कथन सुगम है। वे कुछ कम उनके द्वितीय भाग प्रमाण हैं ॥ १५ ॥ १ अप्रतौ पच्चासेएगुण', श्रा-का-मप्रतिषु 'पच्चासेएण', ताप्रती 'पच्चासेण' इति पाठः । २ अ-श्रा काप्रतिषु 'देसूणा' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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