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________________ ४, २, १४, २५.] वेयणपरिमाणविहाणाणियोगदारं [४८५ एवडियाओ पयडीओ॥२०॥ जेण दुवे चेव गोदकम्मस्स सत्तीयो तेण तस्स दो चेव पयडीओ। अंतराइयस्स कम्मस्स केवडियाओ पयडीओ ॥२१॥ सुगमं । अंतराइयस्स कम्मस्स पंच पयडीओ ॥ २२ ॥ सुगमं । एवदियाओ पयडीओ ॥ २३ ॥ कुदो ? पंचण्णं विसेसणाणं भेदेण तबिसेसिदकम्मक्खंधाणं पि भेदस्स णाओवगयस्स अणब्भुवगमे 'पमाणाणणुसारित्तप्पसंगादो । एवं पयडिअट्ठदा समत्ता । समयपबद्धट्टदाए॥२४॥ एदमहियारसंभालणसुत्तं सुगमं । णाणावरणीय-दंसणावरणीय-अंतराइयस्स केवडियाओ पयडीओ॥२५॥ एदं सुत्तं तिविहसंखेजे णवविहअसंखेजे णवविहअणते च ढोइय एदस्स सुत्तस्स अत्थो वत्तव्यो। उसकी इतनी प्रकृतियाँ हैं ॥ २० ॥ चकि गोत्रकर्मकी दो ही शक्तियाँ हैं अतएव उसकी दो ही प्रकृतियाँ हैं ! अन्तराय कर्मकी कितनी प्रकृतियाँ हैं ।। २१ ॥ यह सूत्र सुगम है। अन्तराय कर्मकी पाँच प्रकृतियाँ हैं ॥ २२ ॥ यह सूत्र सुगम है। उसकी इतनी प्रकृतियाँ हैं ।। २३ ॥ कारण यह कि पाँच विशेषणोंके भेदसे विशेषताको प्राप्त हुए उस कर्मके स्कन्धोंका भी भेद न्याय प्राप्त है। उसके न माननेपर प्रमाणकी अननुसारिताका प्रसंग आता है। इस प्रकार प्रकृत्यर्थता समाप्त हुई। अब समयप्रबद्धार्थताका अधिकार है ॥ २४ ॥ यह अधिकारका स्मरण करानेवाला सूत्र सुगम है। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय कर्मकी कितनी प्रकृतियाँ हैं ॥२५॥ तीन प्रकारके संख्यात, नौ प्रकारके असंख्यात और नौ प्रकारके अनन्तको लेकर इस सूत्रका अर्थ कहना चाहिये। १ अ-श्रा-काप्रतिषु 'पमाणाणुसाहित्त', ताप्रतौ ‘पमाणाणुसारित्त [त्ता]', मप्रतौ 'पमाणाणुसारित्त' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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