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________________ ४४२ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड सुगमं । जहण्णा वा अजहण्णा वा । जहण्णादो अजहण्णा पंचट्ठाण - पदिदा ॥ २०६ ॥ जदि खविदकम्मं सिय लक्खणेणागदेण' अजोगिचरिमसमए कालो जहण्णो कदो तो काळेण सह दव्वं पि जहणणं होदि । अह जइ अण्णहा आगदो तो पंचट्ठाणपदिदा, परमाणुत्तरकमेण चत्तारिपुरिसे अस्सिदूण तस्थ पंचवडिदंसणादो । तासि परूवणा जाणिय कायव्वा । तस्स खेत्तदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ २०७ ॥ सुगमं । [ ४, २, १३, २०६. णियमा अण्णा असंखेज्जगुणन्भहिया ॥ २०८ ॥ कुदो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तजहण्णोगाहणाए संखेज्जंगुल मेत्तअजोगिजहणखेत्ते भागे हिदे वि असंखेज्जरूवोवलंमादो । तस्स भावदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ २०६ ॥ सुगमं । णियमा अजहण्णा अणंतगुणन्भहिया ॥ २१० ॥ यह सूत्र सुगम है । वह जघन्य भी होती है और अजघन्य भी । जघन्य की अपेक्षा अजघन्य पाँच स्थानों में पतित है ॥ २०६ ॥ यदि क्षतिकर्माशिक स्वरूपसे आये हुए जीवके द्वारा आयोगकेवली के अन्तिम समयमें काल जघन्य किया गया है तो काल के साथ द्रव्य भी जघन्य होता है परन्तु यदि वह अन्य स्वरूपसे आया है तो उक्त वेदना पाँच स्थानों में पतित होती है, क्योंकि, चार पुरुषोंका आश्रय करके वहाँ परमाणु अधिकता के क्रमसे पाँच वृद्धियाँ देखी जाती हैं। उन वृद्धियों की प्ररूपणा जानकर करनी चाहिये उसके क्षेत्रकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥ २०७ ॥ Jain Education International यह सूत्र सुगम है । वह नियम से अजघन्य असंख्यातगुणी होती है ।। २०८ ॥ कारण कि अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र जघन्य अवगाहनाका संख्यात घनांगुलां प्रमाण अयोगकेवली के जघन्य क्षेत्रमें भाग देनेपर भी असंख्यात रूप पाये जाते हैं । उसके भावकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥ २०९॥ यह सूत्र सुगम है । वह नियमसे अजघन्य अनन्तगुणी अधिक होती है ।। २१० ॥ १ अ या काप्रतिषु ' - लक्खणेणगदेण' इति पाठः । २ श्राकाप्रतिषु 'कालदो' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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