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________________ ४२८ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड सुगमं । णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुण माहया ॥ १४६ ॥ कुदो ? आउअजहण्णखे तेण सुहुमणिगोदअपज्जत्तएस लद्वेण' अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तेण जहण्णदव्वसामि ओगाहणाए पंचधणुस्सद उस्सेहादो णिप्पण्णाए ओवट्टिदा पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागमेत्तरूवोवलं भादो । तस्स कालदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ १४७ ॥ सुमं । णियमा अजहण्णा असंखेज्जगुण भहिया ॥ १४८ ॥ कुदो ! एगसमयपमाणेण जहण्णकालेण अंतोमुडुत्तमेतदीवसिहाए ओवट्टिदाए अंतमुत्तमेतगुणगारुवलंभादो । तस्स भावदो किं जहण्णा अजहण्णा ॥ १४६ ॥ सुगमं । णियमा अजहण्णा अणंतगुणन्भहिया ॥ १५० ॥ [ ४, २, ११३, १४६. कुदो ! आउअस्स जहण्णभावो अपज्जत्तसंजुत्ततिरिक्खाउ अजहण्णबंधम्मि जादो, जहण्णदव्वसामिभावो पुण सण्णिपंचिंदियपज्जत्त संजुत्तबद्धआउअजहण्णदव्वसंबंधी । यह सूत्र सुगम है । वह नियम से अजघन्य असंख्यातगुणी अधिक होती है ।। १४६ ।। कारण कि सूक्ष्म निमोद लब्ध्यपर्याप्तकों में प्राप्त अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण आयु कर्मके जघन्य क्षेत्रसे पाँच सौ धनुष उत्सेधसे उत्पन्न जघन्य द्रव्य के स्वामीकी अवगाहनाको अपवर्तित करनेपर पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र रूप पाये जाते हैं । उसके कालकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥ १४७ ॥ यह सूत्र सुगम है । वह नियम से अजघन्य असंख्यातगुणी अधिक होती है ॥ १४८ ॥ कारण कि एक समय प्रमाण जघन्य कालसे अन्तर्मुहूर्त प्रमाण दीपशिखा को अपवर्तित करनेपर अन्तर्मुहूर्त मात्र गुणकार पाया जाता है । उसके भावकी अपेक्षा वह क्या जघन्य होती है या अजघन्य ॥ १४९ ॥ यह सूत्र सुगम है । वह नियमसे अजघन्य अनन्तगुणी अधिक होती है ॥ १५० ॥ Jain Education International कारण यह कि आयु कर्मका जघन्य भाव अपर्याप्त के साथ तिर्यंच आयुके जघन्य बन्ध में होता है । परन्तु जघन्य द्रव्यके स्वामीका भाव संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त के साथ बाँधी गई आयुके १ प्रतिषु 'श्रद्धेण' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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