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________________ ३७८] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, १३, ८. यस्स' उक्कस्सखेत्तेण महामच्छुकस्सखेत्ते भागे हिदे सेडीए असंखेज्जदिभागुवलंभादो । सत्तमपुढविचरिमसमयणेरइयस्स उकस्सदव्यसामियस्स' मुक्कमारणंतियस्स उक्कस्सखेत्ते गहिदे संखेज्जगुणहीणा किण्ण लब्भदे ? ण, मुक्कमारणंतियस्स उक्कस्ससंकिलेसाभावेण उक्कस्सजोगाभावेण य उक्कस्सदव्यसामित्तविरोहादो। मुकमारणंतियस्स उक्कस्ससंकिलेसो ण होदि त्ति कुदो णव्वदे ? एदम्हादो 'असंखेज्जगुणहीणा' ति सुत्तादो । तस्स कालदो किमुक्कस्सा अणुकस्सा ॥८॥ सुगममेदं पुच्छासुत्तं । उक्कस्सा वा अणकस्सा वा ॥६॥ जदि रइयचरिमसमए उक्कस्सडिदिसंकिलेसो होज्ज तो कालदो वि णाणावरणीयवेयणा उक्कस्सा होज्ज, उक्कस्ससंकिलेसेण उक्कस्सहिदि मोत्तूण अण्णहिदीणं बंधाभा. वादो। जदि चरिमसमए उक्कस्सहिदिसंकिलेसो ण होदि तो णाणावरणीयवेयणा कालदो णियमा अणुक्कस्सत्तं पडिवज्जदे, चरिमसमए उक्कस्सद्विदिबंधाभावादो। उक्कस्सादो अणुक्कस्सं किं विसेसहीणं संखेनगुणहीणं ति पुच्छिदे तण्णिण्णयमुत्तरसुत्तं भणदिद्रव्य सम्बन्धी स्वामीके उत्कृष्ट क्षेत्रका महाम स्यके उत्कृष्ट क्षेत्रमें भाग देनेपर जगश्रेणिका असंख्यातवां भाग उपलब्ध होता है। शंका-जो सप्तम पृथिवीग्थ अन्तिम समयवर्ती नारकी उत्कृष्ट द्रव्यका स्वामी है और जो मारणन्तिक समुद्घातको कर चुका है उसके उत्कृष्ट क्षेत्रको ग्रहण करनेपर वह (क्षेत्रवेदना) संख्यातगुणी हीन क्यों नहीं पायी जाती है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, मुक्त मारणान्तिक जीवके न तो उत्कृष्ट संक्लेश होता है और न उत्कृष्ट योग ही होता है। अतएव वह उत्कृष्ट द्रव्यका स्वामी नहीं हो सकता। शंका-मुक्त मारणान्तिक जीवके उत्कृष्ट संक्लेश नहीं होता है, यह किस प्रमाणसे जाना जाता है? समाधान-वह 'असंख्यातगुणी हीन है इसी सूत्रसे जाना जाता है। कालकी अपेक्षा वह क्या उत्कृष्ट होती है अथवा अनुत्कृष्ट ॥८॥ यह पृच्छासूत्र सुगम है। उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी ॥४॥ यदि उक्त नारक जीवके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट स्थितिसंक्लेश होता है तो कालकी अपेक्षा भी ज्ञानावरणीयवेदना उत्कृष्ट होती है, क्योंकि, उत्कृष्ट संक्लेशसे उत्कृष्ट स्थितिको छोड़कर अन्य स्थितियोंका बन्ध नहीं होता है और यदि अन्तिम समयमें उत्कृष्ट स्थितिसंक्लेश नहीं होता है तो ज्ञानावरणीयवेदना कालकी अपेक्षा नियमतः अनुत्कृष्टताको प्राप्त होती है, क्योंकि, अन्तिम समयमें उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अभाव है। उत्कृष्ट की अपेक्षा वह अनुत्कृष्ट क्या विशेष हीन होती है या संख्यातगुणी हीन होती है, ऐसा पूछनेपर उसके निर्णय के लिये आगेका सूत्र कहते हैं १ काप्रतौ 'सामित्तयन्स' इति पाटः । २ अ-काप्रत्योः 'सामिस्स', अाप्रतौ 'सामित्तस्स' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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