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________________ ३५४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २,१०, ४४. णाओ। एवमेगो भंगो [१]। अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया' पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी. एयसमयपबद्धा उदिण्णा, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता; सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च उवसंताओ च वेयणाओ। एवमेदस्स सुत्तस्स बे व भंगा [२] । सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च उवसंताओ च ॥४४॥ एदस्स तिसंजोगविदियसुत्तस्स अत्थपरूवणं कस्सामो। तं जहा-एयस्स जीवस्स एयो पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च उवसंताओ च वेयणाओ। एवमेगो भंगो [१] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णा, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धार उवसंताओ; सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च उवसंताओ च वेयणाओ। एवमेदस्स बे चेव भंगा [२] । सिया बज्झमाणिया च उदिण्णाओ च उवसंता च ॥ ४५ ॥ एदस्स तदियसुत्तस्स आलावे भणिस्सामो। तं जहा-एयस्स जीवस्स एया इस प्रकार एक भंग हुआ (१)। अथवा अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनाएं हैं। इस प्रकार इस सूत्रके दो ही भंग हैं (२)। कथंचित् वध्यमान (एक), उदीर्ण (एक) और उपशान्त ( अनेक ) वेदनायें हैं ॥४४॥ तीनोंके संयोग रूप इस द्वितीय सूत्रके अर्थकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनाएं हैं। इस प्रकार एक भंग हुआ (१)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक मयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार इस सूत्रके दो ही भंग हैं (२)। कथंचित् वध्यमान (एक), उदीर्ण (अनेक) और उपशान्त (एक) वेदना है ॥४५॥ इस तृतीय सूत्रके आलापोंको कहते हैं। वे इस प्रकार हैं-एक जीवकी एक प्रकृति एक १ ताप्रतौ 'अणेयाणं [ पयडीणं ] जीवाणमेय' इति पाठः । २ प्रतिषु '-पबद्धानो' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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