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________________ [ ३३७ ४, २, ५०, २८.) वेयणमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणियाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा' उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं अट्ठारह भंगा [१८] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा बज्ममाणियाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ एय समयपबद्धाओ उदिण्णाओ तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ, सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णोओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवमेक्कोणवीस भंगा [१९] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धो बज्झमाणियाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं वीस भंगा [२०] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणियाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवमेक्कवीस भंगा [२१] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणियाओ, तेसिं चेव जीवा. णमणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णांओ च उवसंताओ च एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्ही जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त, कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार अठारह भंग हुए (१८)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त, कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार उन्नीस भंग हुए (१६)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण; उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान,उदीर्ण और उपशान्त वेदनाएं हैं। इस प्रकार बीस भंग हुए (२०)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार इक्कीस भंग हुए (२१)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान. उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंक एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें १ अ-ताप्रत्योः '-पबद्धाओ' इति पाठः । छ, १२-४३। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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