SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 359
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२६] छक्खंडागमे वैयणाखंड [ ४, २, १०, २१. लग्भंति [१६] 1) पुणो एदाओ सोलस पुबिल्लयाओ णव एगट्ठकदासु उदिण्णउवसंताणं दुसंजोगचउत्थसुत्तस्स पणुवीस भंगा हवंति । एवं बज्झमाण-उदिण्ण-उवसंताणमेगदुसंजोगम्मि णिबद्धसुत्तपरूवणा समत्ता। - संपहि बज्झमाण-उदिण्ण-उवसंताणं तिसंजोगमस्सिदण वेयणावियप्पपरूवणट्टमुत्तरसुतं भणदि सिया बज्झमाणिया च उदिण्णा च उवसंता च ॥ २१ ॥ एदस्स सुत्तस्स अत्थे भण्णमाणे वज्झमाण-उदिण्ण-उवसंताणमेग-बहुवयणसदिहिं उविय ११३। पुणो एत्थ अक्खसंचारेण उप्पाइदतिसंजोगसुत्तपत्थारं ठविय |११११२२२२ ११२२११२२/ पुणो बज्झमाण-उदिण्ण-उवसंतजीव-पयडि-समयाणमेय-बहुवयणसंदिट्ठीओ १२१२/१२१२/ हैं (१६)। अब सोलह ये और पूर्वकी नौ, इनको इकट्ठा करनेपर उदीर्ण व उपशान्त सम्बन्धी द्विसंयोग रूप चतुर्थ सूत्रके पच्चीस भंग होते हैं। इस प्रकार बध्यमान, उदीण और उपशान्त सम्बन्धी एक व दोके संयोगमें निबद्ध सूत्रकी प्ररूपणा समाप्त हुई। अब बध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त, इन तीनके संयोगका आश्रय करके वेदनाविकल्पोंकी प्ररूपणा करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं कथंचित् वध्यमान, उदीर्ण और उपशान्त वेदना है ॥ २१ ॥ इस सूत्रके अर्थकी प्ररूपणा करते समय बध्यमान उदीर्ण और उपशान्त, इनके एक म बध्य | उदीर्ण उपशान्त बहुवचनोंकी संदृष्टिको स्थापित करके एक । एक | एक पश्चात् यहाँ अक्षसंचारसे उत्पन्न | अनेक | कनेअ | अनेक | . कराये गये त्रिसंयोग रूप सूत्रके प्रस्तारको स्थापित कर बध्य. एक एक एक एक अनेक अनेक अनेक अनेक उदीर्ण एक | एक अनेक अनेक एक एक अनेक अनेक उपशा. एक अनेक एक अनेक एक अनेक एक अनेक पुनः बध्यमान, उदीर्ण, उपशान्त, जीव, प्रकृति व समय, इनके एक व बहुवचनकी संदृष्टियोंको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy