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________________ ४, २, १०, २०.] वेयणमहाहियारे वेयणवेयणविहाणं [३२३ समयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं णव भंगा । एवमेयजीवमस्सिदण चउत्थसुत्तस्स णव चेव भंगा होति । ___ संपहि णाणाजीवे अस्सिदण तस्सेव चउत्थसुत्तस्स सेसभंगे वत्तइस्सामो। तं जहाअणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडो एयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ' च वेयणाओ। एवं दस भंगा [१०] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवमेकारस भंगा [११] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी एयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ एयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ व उवसंताओ च वेयणाओ। एवं बारह भंगा [१२] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडो एयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणम. णेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ । एवं तेरप भंगा [१३] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंताओ; सिया उदिण्णाओ च उवसंताओ च वेयणाओ। एवं चोदस्स भंगा [१४] । अधवा, अणेयाणं जीवाणमेया पयडी अणेयसमयपबद्धा उदिण्णाओ, तेसिं चेव जीवाणमेया पयडी उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार नौ भंग हुए (९)। इस प्रकार एक जीवका आश्रय करके चतुर्थ सूत्रके नौ ही भंग होते हैं। ___ अब नाना जीवोंका आश्रय करके उसी चतुर्थ सूत्रके शेष भंगोंको कहते हैं। यथा-अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार दस भंग हुए (१०)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्तः कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार ग्यारह भंग हुए (११)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बांधी उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई उपशान्त, कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं । इस प्रकार बारह भंग हुए (१२)। अथवा, अनेक जीवों की एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उदीर्ण, सन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार तेरह भंग हुए (१३)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयों में बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् उदीर्ण और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार चौदह भंग हुए (१४)। अथवा, अनेक जीवोंकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण, उन्हीं जीवोंकी एक प्रकृति १ ताप्रती 'उदिण्णा [ो च ] उवसंताओ' इति पाठः । २ अ-आप्रत्योः 'पबद्धाश्रो' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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