SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४, २, १०, १४.] वेयणमहाहियारे वैयणवेयणविहाणं | ३१५ डीओ एगसमयपबद्धाओ बज्झमाणियाओ, तेसिं चेव जीवाणमणेयाओ पयडीओ अणेयसमयपबद्धाओ उदिण्णाओ सिया बज्झमाणियाओ च उदिण्णाओ च वेयणाओ। एवं चउत्यसुत्तस्स एक्कारस भंगा [११] | एवं बज्झमाणउदिण्णाणं दुसंजोगसुत्ताणमत्थपरूवणा कदा। संपहि बज्झमाण-उवसंताणं दुसंजोगजणिदवेयणाभंगपरूवणद्वमुत्तरसुत्तं भणदि सिया बज्झमाणिया उवसंता च ॥ १३ ॥ वेयणा ति अणुवदे । एदस्स सुत्तस्स अत्थे भण्णमाणे बज्झमाणाणुदिण्णाण व तिण्णि पत्थारे ठविय वत्तव्यं । तं जहा--एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्ममाणिया, तस्सेव जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा उवसंता, सिया बज्झमाणिया च उवसंता च वेयणा । एवं पढमसुत्तस्स एगो चेव भंगो [१] । सिया बज्झमाणिया' च उवसंताओ च ॥ १४॥ एदस्स विदियसुत्तस्स भंगपरूवणा कीरदे । तं जहा-एयस्स जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्स चेव जीवस्स एया पयडी अणेयसमयपबद्धा उवसंताओ' सिया बज्झमाणिया च उवसंताओ च वेयणा । एवं विदियसुत्तस्स पढमभंगो [१] । अधवा, एयरस जीवस्स एया पयडी एयसमयपबद्धा बज्झमाणिया, तस्सेव जीवस्स अणेयाओ प्रकृतियाँ एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उन्हीं जीवोंकी अनेक प्रकृतियाँ अनेक समयोंमें बाँधी गई उदीर्ण; कथंचित् बध्यमान और उदीण वेदनायें हैं। इस प्रकार चतुर्थ सूत्रके ग्यारह भंग हुए (११)। इस प्रकार बध्यमान और उदीर्ण वेदनाओंके द्विसंयोग सम्बन्धी सूत्रोंके अर्थकी प्ररूपणा की गई है। अब वध्यमान और उपशान्त वेदनाओंके द्विसंयोगसे उत्पन्न वेदनाभङ्गोंके प्ररूपणार्थ आगेका सूत्र कहते हैं कथंचित् बध्यमान और उपशान्त वेदना है ॥ १३ ॥ 'वेदना' इसकी अनुवृत्ति है। इस सूत्रके अर्थकी प्ररूपणा करते समय बध्यमान और उदीर्ण वेदनाके समान तीन प्रस्तारोंको स्थापित करके कथन करना चाहिये। वह इस प्रकारसे-एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान और उपशान्त वेदना है। इस प्रकार प्रथम सूत्रका एक ही भङ्ग होता है (१)। कथंचित् बध्यमान ( एक ) और उपशान्त ( अनेक ) वेदनायें हैं ॥ १४ ॥ इस द्वितीय सूत्रके भङ्गोंकी प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार है-एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी एक प्रकृति अनेक समयोंमें बाँधी गई उपशान्त; कथंचित् बध्यमान और उपशान्त वेदनायें हैं। इस प्रकार द्वितीय सूत्रका प्रथम भङ्ग हुआ (१)। अथवा, एक जीवकी एक प्रकृति एक समयमें बाँधी गई बध्यमान, उसी जीवकी अनेक प्रकृतियाँ एक १ श्र-आप्रत्योः 'बन्झमाणियानो', ताप्रतौ 'बज्झमाणिया [ो]' इति पाठः । २ प्रतिषु 'उवसंता' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy