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________________ ४, २, ७, २२५.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया [ १९९ पमाणपरूवणहूँ । एदस्स अस्थपरूवणं कस्सामो। तं जहा-एकिस्से संखेज भागवड्डीए हेडा जदि कंदयसहिदकंदयवग्गमेत्ताणि अणंतभागवड्डिट्ठाणाणि लभंति तो रूवाहियकंदयमेत्ताणं संखेजभागवड्डिहाणाणं किं लभामो त्ति कंदयवग्गं कंदयं च दो पडिरासीयो करिय जहाकमेण एगकंदएण एगरूवेण च गुणिय मेलाविदे एगकंदयघणो बे-कंदयवग्गा कंदयं च उपलब्भदे। असंखेज्जगुणस्स हेह्रदो' असंखेज्जभागभहियाणं कंदयघणो बेकंदयवग्गा कंदयं च ॥२२५॥ ६ Amar १५ एदस्स अत्थो वुच्चदे। तं जहा-एकस्स संखेज्जगुणवडिहाणस्स हेह्रदो जदि कंदयसहिदकंदयवग्गमेत्ताणि असंखेज्जभागवड्डिहाणाणि लब्भंति तो रूवाहियकंदयमेत्तसंखेज्जगुणवड्डिहाणाणं किं लभामो त्ति पुव्वं व दुप्पडिरासिं कादण कमेणेगकंदएणेगरूवेण च गुणिय मेलाविदे एगो कंदयघणो बेकंदयवग्गा कंदयं च उपलब्भदे। अणंतगुणस्स हेट्टदो संखेज्जभागब्भहियाणं कंदयघणो वेकंदयवग्गा कंदयं च ॥ २२६॥ mmoc इसकी अर्थप्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-एक संख्यातभागवृद्धिके नीचे यदि काण्डक सहित काण्डकवर्ग प्रमाण अनन्तभागवृद्धिस्थान पाये जाते हैं तो एक अधिक काण्डक प्रमाण संख्यातभागवृद्धिस्थानोंके नीचे वे कितने पाये जावेंगे, इस प्रकार काण्डकवर्ग और काण्डक प्रमाण दो प्रतिराशियाँ करके क्रमशः एक काण्डक और एक अंकसे गुणित करके मिला देनेपर एक काण्डकघन, दो काण्डकवर्ग और एक काण्डक पाया जाता है। असंख्यातगुणवृद्धिस्थानके नीचे असंख्यातभागवृद्धियोंका एक काण्डकघन, दो काण्डकवर्ग और एक काण्डक [४+(४२x२)+४] होता है ॥ २२५ ॥ इसका अर्थ कहते हैं। वह इस प्रकार है- एक संख्यातगुणवृद्धिस्थानके नीचे यदि काण्डक सहित काण्डकवर्ग प्रमाण असंख्यातभागवृद्धिस्थान पाये जाते हैं तो एक अधिक काण्डक प्रमाण संख्यातगुणवृद्धिस्थानोंके वे कितने पाये जावेंगे इस प्रकार पहलेके समान दो प्रतिराशियाँ करके क्रमशः एक काण्डक और एक अंकसे गुणित करके मिलानेपर एक काण्डकघन, दो काण्डकवर्ग और एक काण्डक पाया जाता है। अनन्तगुणवृद्धिस्थानके नीचे संख्यातभागवृद्धिस्थानोंका एक काण्डकघन, दो काण्डकवर्ग और एक काण्डक [४+(४२४२)+४] होता है ॥ २२६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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