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________________ १८६ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [२, ४, ७, २१४ कमेणुप्पत्तिदंसणादो। तेसिं पमाणमेदं ४९ । संपहि एत्थ सत्तखंडमेत्तपक्खेवा जदि होंति तो अण्णं जहण्णट्ठाणं उप्पजदि । सत्तखंडमेत्तपक्खेषा-१६।' णमेस्थतणपिसुलेहिंतो उप्पत्तिविहाणं वुचदे । तं जहा-१ 'एदस्स गच्छस्स संकलणाए। समकरणे कदे सछब्भागअखंडविखभं ? सतिभागसोलसखंडायाम |R खेत्तं होदि । संपहि तिण्णिपिसुलमेत्तो एदस्स खेत्तस्स पहवो होदि ति बाहल्लेण तिणि फालीयो कादण एगफालीए सेसदोफालीसु संधिदासु आयामो पुव्विल्लायामादो तिगुणो होदि | ४९ । विक्खंभो पुण पुचिल्लो चेव । एवंडिदखेत्तम्हि सत्तखंडविक्खंभेण एगूणवंचासखंडायामेण खेत्तं मोत्तण सच्छभागएगखंडविक्खंभं एगूणवंचासखंडायाम खेत्तं पादेद्ण पुध हविय पुणो एत्थ एगखंडछब्भागविक्खंभं एगूणक्चासखंडायाम तच्छेद्ण पुध दुवेदव्वं । पुणो एगखंड विक्खंभ-एगूणवंचासायामक्खेत्तं सत्तफालीयो कादूर्ण पदरागारेण दृहदे आयाम-विक्खंभेहि सत्तखंडपमाणसमचउरसखेत्तं होदि । पुणो एदम्मि सत्तविक्खंभएगूणवंचासायामक्खेत्तस्सुवरि ठविदे सत्तखंडविक्खंभ-छप्पण्णा ___ उनका प्रमाण यह है -४९ । अब यहाँ यदि सात खण्ड मात्र प्रक्षेप होते हैं तो अन्य जघन्य स्थान उत्पन्न होता है। यहाँ के पिशुलोंसे सात खण्ड मात्र प्रक्षेपोंकी उत्पत्तिके विधानको कहते हैं। वह इस प्रकार है-१६३ इस गच्छके संकलनका समीकरण करनेपर छठे भाग सहित आठ (८) खण्ड विष्कम्भ और एक तृतीय भाग सहित सोलह ( १६) खण्ड आयाम युक्त क्षेत्र होता है। अब चूकि इस क्षेत्रका प्रभव तीन पिशुल प्रमाण होता है, अतएव इसकी बाहल्यकी ओरसे तीन फालियाँ करके एक फालिके ऊपर शेष दो फालियोंको रखनेपर पूर्व आयामसे तिगुणा आयाम होता है-१६१४३:४९। परन्तु विष्कम्भ पहिलेका ही रहता है। इस प्रकार स्थित क्षेत्र में सात खण्ड विष्कम्भ और उनचास खण्ड आयाम युक्त क्षेत्रको छोड़कर छठे भाग सहित एक खण्ड विष्कम्भ और उनचास खण्ड आयाम युक्त क्षेत्रको फाड़कर पृथक स्थापित करके फिर यहाँ एक खण्डके छह भाग विष्कम्भ एवं उनचास खण्ड आयाम युक्त क्षेत्रको काटकर पृथक स्थापित करना चाहिये। फिर एक खण्ड विष्कम्भ और उनचास खण्ड आयाम युक्त क्षत्रकी सात फालियाँ करके प्रतराकारसे स्थापित करनेपर आयाम व विष्कम्भसे सात खण्ड प्रमाण समचतुकोण क्षेत्र होता है। फिर इसको सात खण्ड विष्कम्भ और उनचास खण्ड आयाम युक्त क्षेत्रके १ ताप्रतौ । १ | इति पाठः। २ प्रतिषु पोहवो होदि इति पाठः । । ३ ३ तापतौ 'खंडायामेण' इति पाठ । ४ अ-पाप्रत्योरनुपलभ्यमानोऽयं पाठस्ताप्रतितोऽत्र योजितः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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