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४, २, ७, २१४.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया
[१७१ संपहि एत्थ पण्णारसखंडमेत्तसगलपक्खेवेसु संतेसु एगं जहण्णढाणं उप्पजदि । तेसिं उप्पत्तिविहाणं वुचदे। तं जहा-तदित्थहाणपिसुलपमाणमिगिदालखंडसंकलणमत्तं' [४१]। रूवूणमिदि किण्ण भण्णदे ? ण, थोवभावेण अप्पहाणत्तादो। पुणो समकरणे कदे इगिदालखंडायाममिगिदालदुभागविक्खंभं च होदूण चेदि | २० ४१|
एवं हिदक्खेत्तभंतरे पुबिल्लायामपमाणेण पण्णारसखंडमेत्तपिसुलविक्खंभं मोत्तूण एगखंडदुभागाहियपंचखंडविक्खंभं इगिदालखंडायामक्खेत्तं खंडेदूणमव- | ११ ।४१ णिय पुध हवेयव्वं पण्णारसखंडविक्खंभइगिदालखंडायामखेत्तग्गहणहं ।। २ -
पुणो एत्थ एगखंडद्धविक्खंभेण इगिदालखडायामेण खेनं घेत्तूण | २ पुध हवेदव्यं ___पुणो एत्थ एगखडद्धविक्ख भेण एगखंडायामेण तच्छेदूण पुध छवेदव्वं ।। ३१
अब यहाँ पन्द्रह खण्ड प्रमाण सकल प्रक्षेपोंके होनेपर एक जघन्य स्थान उत्पन्न होता है। उनकी उत्पत्तिका विधान बतलाते हैं। वह इस प्रकार है-बहाँ के स्थान सम्बन्धी पिशुलोंका प्रमाण इकतालीस खण्डोंके संकलन मात्र है (४१)।
शंका-वह एक अंकसे कम है, ऐसा क्यों नहीं कहते ? समाधान नहीं, क्योंकि, स्तोक स्वरूप होनेसे यहाँ उसकी प्रधानता नहीं है।
फिर उनका समीकरण करनेपर इकतालीस खण्ड प्रमाण आयाम और इकतालीसके द्वितीय भाग प्रमाण विष्कम्भसे युक्त होकर क्षेत्र स्थित होता है-२०३४१ । इस प्रकारसे स्थित क्षेत्रके भीतर पन्द्रह खण्ड विस्तृत और इकतालीस खण्ड आयत क्षेत्रको ग्रहण करनेके लिये-पहिले आयामके प्रमाणसे पन्द्रह खण्ड मात्र पिशुलोंके बराबर विष्कम्भको छोड़कर एक खण्डके द्वितीय भागसे अधिक पांच खण्ड प्रमाण विस्तृत और इकतालीस खण्ण प्रमाण आयत क्षेत्रको खण्डित करके अलग करके पृथक स्थापित करना चाहिये ११४१। फिर इसमेंसे एक खण्डके अर्ध भाग मात्र विष्कम्भ और इकतालीस खण्ड मात्र आयामसे क्षेत्रको ग्रहणकर पृथक् स्थापित करना चाहिये । ११। फिर इसमेंसे एक खण्डके अर्ध भाग मात्र विष्कम्भ और एक खण्ड मात्र आयामसे काटकर पृथक् स्थापित करना चाहिये । इस ग्रहण किये गये क्षेत्रसे शेष क्षेत्र
.१ प्रतिषु 'भेत्त' इति पाठः । २ तापतौ
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-एवंविधान संदृष्टिः।
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