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________________ १७४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड २,७,२१४. मद्धाणं गंतूण दुगुणवड्डी होदि त्ति जाणावणहं परूवणा कीरदे । तं जहा-एत्थ बालजणाणं बुद्धिजणणटं तीहि पयारेहि दुगुणवड्डिपरूवणा कीरदे'। कधं तिविहा परूवणा कीरदे ? थूला मज्झिमा सुहमा चेदि । तत्थ ताव थला परूवणा कस्सामो-जहण्णट्ठाणादो उवरि उक्स्स संखेज्जमेत्तेसु संखेज्जभागवड्डिहाणेसु गदेसु दुगुणवड्डी होदि । कुदो ? उक्कस्ससंखेजमेत संखेज्जभागपक्खेवेहि एगजहण्णठाणुप्पत्तीदो बड्डिजणिदजहण्णहाणेण सह ओघजहण्णट्ठाणस्स तत्तो दुगुणत्तदंसणादो। कधमेदिस्से परूवणाए थूलतं ? पिसुलादीणि मोत्तण पक्खेवेहितो चेव उप्पण्णजहण्णट्ठाणेण दुगुणत्तपरूवणादो। संपहि मज्झिमपरूवणा कीरदे । तं जहा-अंगुलस्स असंखज्जदिभागमेत्तेसु संखेज्जमागवड्डिहाणेसु उक्कस्ससंखेज्जमेत्त संखेज्जभागवड्डिहाणाणं पढमट्ठाणप्पहुडि रचणं कादण तत्थ उक्कस्ससंखेज्जयस्स तिण्णिचदुब्भागमेत्तद्धाणमुवरि गंतूण दुगुणवड्डी होदि । उक्कस्ससंखेज्जय मिदि संदिट्ठीए सोलस घेत्तव्वा । उकस्ससंखेज्जस्स जहण्णहाणे भागे हिदे संखेज्जमागवड्डी होदि। तम्मि जहण्णहाणे पक्खित्ते पढमसंखेज्जभागवड्डिहाणं उप्पज्जदि । दोपक्खेवेसु एगपिसुले च जहण्णहाणे पक्खित्ते विदियसंखेज्जभागवडिष्टाणं होदि । तिसु पक्खेवेसु तिसु पिसुलेसु एगपिसुलापिसुले च जहण्णहाणे पडिरासिय जाकर दुगुणी वृद्धि होती है, यह जतलानेके लिये प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-यहाँ अज्ञानी जनोंके बुद्धि उत्पन्न करानेके लिये तीन प्रकारसे दुगुणवृद्धिकी प्ररूपणा करते हैं। कैसे तीन प्रकारसे प्ररूपणाकी जाती है ? वह स्थूल, सूक्ष्म और मध्यमके भेदसे तीन प्रकार है। उनमें पहिले स्थल प्ररूपणा करते है-जघन्य स्थानके आगे उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण संख्यातभागवृद्धिस्थानोंके बीतनेपर दुगुणवृद्धि होती है, क्योंकि, उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण संख्यातभागप्रक्षेपोंसे एक जघन्य स्थानके उत्पन्न होनेसे वृद्धिजनित जघन्य स्थानके साथ ओघ जघन्य स्थान उससे दुगुणा देखा जाता है। शंका-यह प्ररूपणा स्थूल कैसे है ? समाधान-कारण कि इसमें पिशुलादिकोंको छोड़कर प्रक्षेपोंसे ही उत्पन्न जघन्य स्थानसे दुगुणत्वकी प्ररूपणा की गई है। अब मध्यम प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार है-अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र संख्यातभागवृद्धिस्थानों में उत्कृष्ट संख्यात मात्र संख्यातभागवृद्धिस्थानोंके प्रथम स्थानसे लेकर रचना करे। उनमें उत्कृष्ट संख्यातका तीन चतुर्थभाग (3) मात्र अध्वान आगे जाकर दुगुणवृद्धि होती है। उत्कृष्ट संख्यातके लिये संदृष्टिमें सोलह (१६) अङ्क ग्रहण करने चाहिये। उत्कृष्ट संख्यातका जघन्य स्थानमें भाग देनेपर संख्यातभागवृद्धि होती है। उसको जघन्य स्थानमें मिलानेपर प्रथम संख्यातभागवृद्धिस्थान उत्पन्न होता है। दो प्रक्षेपों और एक पिशुलको जघन्य स्थानमें मिलानेपर द्वितीय संख्यातभागवृद्धिस्थान उत्पन्न होता है। तीन प्रक्षेपों, तीन पिशुलों और एक पिशुला १ अप्रतौ 'कीरदे' इत्येतत् पदं नोपलभ्यते इति पाठः । २ तापतौ-संखेजमेत्तसंखेज्जमेत्त' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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