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________________ ४, २, ७, २०४.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया [ १४३ किं च सरिसधणियपरमाणूहि अणुभागवुड्डीए संतीए सरिसधणियपरमाणुपरिक्खएण अणुभागहाणीए होदव्वं । ण च एवं, पढमाणुभागखंडयफालीए पदमाणाए वि' अणुभागढाणहाणिप्पसंगादो। सजोगिकेवलिम्हि गुणसेडीए उच्चागोदपरमाणुपोग्गलक्खंधेसु गलमाणेसु वि उच्चागोदाणुभागस्स उकस्सत्तुवलंभादो वा ण सरिसधणिएहि अणुभागवुड्डी । तदो पक्खेवफद्दयवग्गणाणं एसो भागहारो होदि, तव्वुड्डीए अणुभागट्टाणवुड्डिदंसणादो। ण च पक्खेवस्स एगोलीए हिदपरमाणणम विभागपडिच्छेदेहि ढाणवुड्डी होदि, भिण्णदव्वहिदाणं सत्तीणमेयत्तविरोहादो। केवलणाणावरणुकस्साणुभागादो वीरियंतराइयस्स तप्फद्दए हिंतो बहुदरफद्दयसंखस्स अणुभागेण समाणतण्णहाणुववत्तीदो वा एगोलिट्ठिदपरमाणूणमणुभागपडिच्छेदा णाणुभागवुड्डीए कारणं । तदो सरिसधणियाणुभागस्सेव एगोलीअणुभागस्स वि ण एसो भागहारो । किं तु एगपक्खेवचरिमवग्गणाए अणुभागवुड्डीए एसो भागहारो। पुणो एदेण भागहारेण जहण्णहाणसण्णिदएगपरमाणुअणुभागे भागे हिदे जहण्णट्ठाणस्स अणंतिमभागो आगच्छदि त्ति सधजीवरासिभागहारस्सुवरि जे उब्भाविददोसा ते सव्वे एत्थ पावेंति त्ति एसो पक्खोण णिरवजो। तदो सुत्तवइत्तादो सव्वजीवरासी चेव दूसरे, समान धनवाले परमाणुओंसे अनुभागवृद्धिके होनेपर समान धनवाले परमाणुओंकी हानिसे अनुभागकी हानि भी होनी चाहिये । परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, वैसा होनेपर प्रथम अनुभागकाण्डककी फालिके नष्ट होनेके समयमें भी अनुभागस्थानकी हानिका प्रसंग अनिवार्य होगा। इसके अतिरिक्त सयोगकेवली गुणस्थानमें गुणश्रेणि द्वारा उच्च गोत्रके परमाणुओंसम्बन्धी पुद्गलस्कन्धाक गलनके समयमें भी चूंकि उच्चगोत्रका अनभाग उत्कर पा समान धनवाले परमाणुओंसे अनुभागकी वृद्धि होना संभव नहीं है। इस कारण यह भागहार प्रक्षेपस्पर्द्धकोंकी वर्गणाओंका है, क्योंकि, उनकी वृद्धिसे अनुभागस्थानकी वृद्धि देखी जाती है। प्रक्षेपके एक पंक्तिमें स्थित परमाणुओं सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेदोंसे भी स्थानवृद्धि नहीं होती है, क्योंकि, भिन्न द्रव्योंमें स्थित शक्तियोंके एक होनेका विरोध है। अथवा, केवलज्ञानावरणके उत्कृष्ट अनु. भागसे उसके स्पर्द्धकोंकी अपेक्षा अधिक स्पर्द्धकसंख्यावाले वीर्यान्तरायके अनुभागरूपसे समानता अन्यथा बननहीं सकती अतःएक पंक्तिमें स्थित परमाणुओंके अविभागप्रतिच्छेद अनुभागवृद्धिके कारण नहीं हो सकते । अतएव समानधनवाले अनुभागके समान एक पंक्ति रूप अनुभागका भी यह भागहार सम्भव नहीं है। किन्तु एक प्रक्षेप सम्बन्धी अन्तिम वर्गणाकी अनुभागवृद्धिका यह भागहार है। ___इस भागहारका जघन्य स्थान संज्ञावाले एक परमाणुके अनुभागमें भाग देनेपर चूंकि जधम्य स्थानका अनन्तवाँ भाग आता है, अतएव सब जीवराशि भागहारके ऊपर जो दोष दिये गये हैं वे सब यहाँ पाये जाते हैं । इसीलिये यह निर्दोष पक्ष नहीं है। इस कारण सूत्रोपदिष्ट १ अश्रापत्योः 'पढमठाणाए बि'; तापतौ 'पढमणाए वि' इति पाठः।... . . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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