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________________ ११०] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ७, १९९. णमद्धत्तुवलंभादो । संदिट्टीए तिण्णिगुणहाणिभागहारो एसो २४ । अधवा, दिवड्डगुणहाणिखेत्तं ठविय - अण्णोण्णब्भत्थरासिमेत्तफालीयो कादण तत्थ एगफालीए उवरि सेसफालीसु ठविदासु तिण्णिगुणहाणीयो भागहारो होदि । अणेण विहाणेण खेत्तपरूवणं तेरासियकम' च जाणिदण णेदव्वं जाव जहण्णाणुभागट्ठाणस्स चरिमवग्गणे ति । एवमवहारपरूवणा समत्ता। जधा अवहारो तधा भागाभागो, विसेसाभावादो।। अप्पाबहुगं उच्चदे-सव्वत्थोवा उक्कस्सियाए वग्गणाए कम्मपदेसा ९ । जहणियाए वग्गणाए कम्मपदेसा अणंतगुणा २५६' । को गुणगारो १ अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो' सिद्धाणमणंतभागमेत्तो' किंचूणण्णोण्णब्भत्थरासी। अजहण्ण-अणुकस्सियासु वग्गणासु कम्मपदेसा अणंतगुणा २८०७ । को गुणगारो ? किंचूणदिवड्डगुणहाणीयो। अपढमासु वग्गणासु कम्मपदेसा विसेसाहिया २८१६ । केत्तियमेत्तो विसेसो ? उक्कस्सवग्गणमेत्तो। अणुक्कस्सियासु वग्गणासु कम्मपदेसा विसेसाहिया । ३०६३। केत्तियमेत्तो विसेसो ? उक्कस्सवग्गणकम्मपदेसेहि ऊणपढमवग्गणकम्मपदेसमेत्तो । सव्वासु वग्गणासु पाये जाते हैं। संदृष्टिमें तीन गुणहानि रूप भागहार यह है-२४ । __ अथवा, डेढ़ गुणहानि क्षेत्रको स्थापित कर (संदृष्टि मूलमें देखिये ) अन्योन्याभ्यस्त राशि प्रमाण फालियाँ करके उनमेंसे एक फालिके ऊपर शेष फालियोंको स्थापित करनेपर तीन गुणहानियाँ भागहार होती हैं। इस विधिसे क्षेत्रप्ररूपणा और त्रैराशिक क्रमको जानकर जघन्य अनुभागस्थानकी अन्तिम वर्गणा तक ले जाना चाहिये । इस प्रकार अवहारप्ररूपणा समाप्त हुई। जैसी अवहारकी प्ररूपणा की गई है वैसी ही भागाभागकी भी प्ररूपणा है, क्योंकि इससे उसमें कोई विशेषता नहीं है। अल्पबहुत्वका कथन करते हैं - उत्कृष्ट वर्गणामें कर्मप्रदेश सबसे स्तोक हैं (९)। उनसे जघन्य वर्गणामें कर्मप्रदेश अनन्तगुणे हैं ( २५६ )। गुणकार क्या है ? अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणी और सिद्धोंके अनन्तवें भाग मात्र कुछ कम अन्योन्याभ्यस्त राशि गुणकार है। उनसे अजघन्य. अनुत्कृष्ट वर्गणाओंमें कर्मप्रदेश अनन्तगुणे हैं ( २८०७ )। गुणकार क्या है। ? कुछ कम डेढ़ गुणहानियाँ गुणकार है। उनसे अप्रथम वर्गणाओंमें कर्मप्रदेश विशेष अधिक है (२८१६)। विशेषका प्रमाण कितना है ? उत्कृष्ट वर्गणाके बराबर है। उनसे अनुत्कृष्ट वर्गणाओंमें कर्मप्रदेश विशेष अधिक हैं ( ३०६३) । विशेष कितना है ? उत्कृष्ट वर्गणाके कर्मप्रदेशोंसे हीन प्रथम वर्गणाके कर्मप्रदेशोंके बराबर है। उनसे सब वर्गणाओंमें कर्मप्रदेश विशेष अधिक हैं ( ३०७२)। विशेष १अ-बापत्योः 'तेरासियकम्म' इति पाठः। २ प्रतिषु संहष्टिरियं 'किंचूणण्णोण्णब्भत्थरासी' इत्यतः पश्चादुपलभ्यते इति पाठः। ३ अप्रतौ 'अणंतगुणा' इति पाठः। ४ ताप्रतौ 'भागमेत्तो। किंचूण' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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