SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४, २, ७, १६६.] वेयणमहाहियारे वेयणभावविहाणे विदिया चूलिया हिदे तदियवग्गणपमाणं होदि । अधवा, दिवड्डगुणहाणिमेतखेत्तं ठविय एगेगवग्गणविसेसविक्खंभेण दिवड्डगुणहाणिआयामेण दोफालीयो पाडिय दुरूवूणणिसेयभागहारमेत्तवग्गणविसेसविक्खंभ-दिवड्डगुणहाणियायामखेत्तस्सुवरि ठविदे सादिरेयदिवड्ढगुणहाणी भागहारो' होदि । संपहि चउत्थवग्गणपमाणेण सव्वदव्वे अवहिरिज्जमाणे सादिरेयदुरूवाहियदिवड्डगुणहाणिहाणंतरेण कालेण अवहिरिज्जदि । तं जहा-दिवड्डगुणहाणिमेत्तपढमवग्गणासु चउत्थवग्गणपमाणेण अवहिरिज्जमाणासु वारं पडि वारं पडि तिण्णि-तिण्णिवग्गणविसेसा उव्वरंति । एवमवहिरिदे दिवड्डगुणहाणिमेत्तचउत्थवगाणाअो लब्भंति । पुणो उव्वरिदवगणविसेसेसु तिगुणदिवड्डगुणहाणिमेत्तेसु चउत्थवग्गणपमाणेण अवहिरिज्जमाणेसु सादिरेयदोरूवाणि लब्भंति । पुणो एत्थ अण्णेसु केत्तिएसु वग्गणविसेसेसु संतेसु तदिया भागहारसलागा लब्भदि त्ति भणिदे णवरूवूणदिवड्डगुणहाणिमत्तवग्गणविसेसेसु संतेसु उप्पज्जदि । ण च एचियमस्थि । तेण सादिरेयदोरूवमेत्तो चेव पक्खेवो होदि । एदम्मि दिवड्डगुणहाणिम्मि पक्खित्ते सादिरेयदोरूवाहियदिवड्डगुणहाणीयो भागहारो होदि । सो अथवा, डेढ़ गुणहानि मात्र क्षेत्रको स्थापित कर ( संदृष्टि मूल में देखिये) एक एक वर्गणाविशेषके विष्कभरूप और डेढ़ गुणहानि आयामरूप दो फालियाँ फाड़कर दो अंक कम निषेकभागहार प्रमाण वर्गणा वशेष विष्कम्भवाले और डेढ़ गुणहानि आयामवाले क्षेत्रके ऊपर रखनेपर साधिक डेढ़ गुणहानि भागहार होता है। अब चतुर्थ वर्गणाके प्रमाणसे सब द्रव्यको अपहृत करनेपर वह साधिक दो अङ्क अधिक डेढ़ गुणहानिस्थानान्तरकालके द्वारा अपहृत होता है । यथा-डेढ़ गुणहानि प्रमाण प्रथम वर्गणाओंको चतुर्थ वर्गणाके प्रमाणसे अपहृत करनेपर प्रत्येक बार तीन तीन वर्गणाविशेष शेष रहते हैं। इस प्रकार अपहृत करनेपर डेढ़ गुणहानि मात्र चतुर्थ वर्गणाऐं प्राप्त होती हैं। फिर शेष रहे तिगुनी डेढ़गुणहानि मात्र वर्गणाविशेषोंको चतुर्थ वर्गणाके प्रमाणसे अपहृत करनेपर साधिक दो अंक प्राप्त होते हैं । पुनः यहाँ अन्य कितने वर्गणाविशेषोंके होनेपर तृतीय भागहारशलाका प्राप्त होती है ऐसा Jछनेपर कहते हैं कि नौ अंक कम डेढ़ गुणहानि मात्र वर्गणाविशेषोंके होनेपर तृतीय भागहारशलाका प्राप्त होती है। परन्तु यहाँ इतना नहीं है अतएव साधिक दो अंक मात्र ही प्रक्षेप होता है। इसको डेढ़ गुणहानिमें मिलानेपर साधिक दो अंक अधिक डेढ़ गुणहानियाँ भागहार होती हैं। वह भी यह १ प्रतिषु 'गुणहाणिभागहारो' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy