SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०४] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ७, १६६. पमाणं वुचदे-णाणापदेसगुणहाणिहाणंतरसलागाणमेगपदेसगुणहाणिहाणंतरस्स च पमाणमभवसिद्धिएहि अणंतगुणं सिद्धाणमणंतभागमेत्तं होदि । पमाणपरूवणा गदा। अप्पाबहुगं उच्चदे-सव्वत्थोवा णाणापदेसगुणहाणिहाणंतरसलागाओ। एगपदेसगुणहाणिहाणंतरमणंतगुणं । को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतभागमेत्तो । एवं सेडिपरूवणा गदा । अवहारो उच्चदे-पढमाए वग्गणाए कम्मपदेसपमाणेण सव्ववग्गणकम्मपदेसा केवचिरेण कालेण अवहिरिजंति ? अणंतेण कालेण, पढमणिसेयपमाणेण सव्वदव्वे कोरमाणे दिवड्डगुणहाणिमेत्तपढमणिसेयाणमुवलंभादो। एत्थ दिवड्डगुणहाणिमेत्तपढमणिसेयाणं उप्पायणविहाणं जहा दव्वविहाणे भणिदं तहा भणिय गेण्हिदव्वं । विदियाए वग्गणाए कम्मपदेसपमाणेण सव्ववग्गणकम्मपदेसा केवचिरेण कालेण अवहिरिजंति ? सादिरेयदिवड्डगुणहाणिहाणंतरेण कालेण अवहिरिजंति । तं जहा—संदिट्टीए' सव्ववग्गणदव्यमेदं [३०७२ ] । पढमवग्गणभागहारदिवड्डपमाणं संदिट्टए एवं [१२] । दिवढं विरलेदृण सव्वदचं समखंडं कादूण दिण्णे एकेकस्स रूवस्स पढमवग्गणपदेसपमाणं पावदि । पुणो तासु दिवड्डगुणहाणिमेत्तपढमवग्गणासु विदियवग्गणापमाणेण प्रमाणका कथन करते हैं-नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तरशलाकाओं और एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तरका प्रमाण अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणा और भव्यसिद्धोंके अनन्तवें भाग मात्र है । प्रमाणप्ररूपणा समाप्त हुई। ____ अल्पबहुत्वका कथन करते हैं-नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तरशलाकायें सबसे स्तोक हैं। उनसे एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर अनन्तगुणा है । गुणकार क्या है ? गुणकार अभव्यसिद्धोंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण है । इस प्रकार श्रेणिप्ररूपणा समाप्त हुई। अवहारका कथन करते हैं-प्रथम वर्गणाके कर्मप्रदेशोंके प्रमाणसे सब वर्गणाओंके कर्मप्रदेश कितने कालद्वारा अपहृत होते हैं ? अनन्त काल द्वारा अपहृत होते हैं, क्योंकि, सब द्रव्यको प्रथम निषेकके प्रमाणसे करनेपर डेढ़ गुणहानि मात्र प्रथम निषेक पाये जाते हैं। यहाँ देह राणहानि मात्र प्रथम निषेकोंके उत्पादनकी विधि जैसे द्रव्यविधान में कही गई है वैसे कहकर ग्रहण करना चाहिये। द्वितीय वर्गणाके कर्मप्रदेशप्रमाणसे सब वर्गणाओंके कर्मप्रदेश कितने काल द्वारा अपहृत होते हैं ? साधिक डेढ़ गुणहानिस्थानान्तर काल द्वारा अपहृत होते हैं। यथासंदृष्टिमें सब वर्गणाओंका द्रव्य यह है-३०७२ । प्रथम वर्गणाके भागहार स्वरूप डेढ़ गुणहानिका प्रमाण यह है-१२ । डेढ़ गुणहानिका विरलन कर समस्त द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति प्रथम वर्गणाके कमेप्रदेशोंका प्रमाण प्राप्त होता है। फिर उन डेढ़ गुणहानि मात्र प्रथम वर्गणाओंको द्वितीय वर्गणाके प्रमाणसे अपहृत करनेपर एक एकके प्रति एक एक वर्गणा १ अ-ताप्रत्योः 'संदिही' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001406
Book TitleShatkhandagama Pustak 12
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1955
Total Pages572
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy