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________________ १, २, ५, ८. वेयणमहाहियारे वेयणखेत्तविहाणे सामित्तं [१७ होदि ति कधं णव्वदे ? सयंभुरमणसमुद्दरस बाहिरे' दीवे अच्छिदो त्ति अभणिय 'सयंभुरमणसमुद्दस्स बाहिरिल्लए तडे अच्छिदो' त्ति सुत्तादो णव्वदे ? सगबाहिरवेइयाए परंतो त्ति सयंभुरमणसमुद्दो, तरस बाहिरिल्लतडो णाम समुद्दपरभूभागदेसो । तत्थ अच्छिदो त्ति घेत्तव्वं । सयंभुरमणसमुद्दस्स बाहिरिल्लतडो णाम तदवयवभूदबाहिरवेइया, तत्थ महामच्छो अच्छिदो त्ति के वि आइरिया भणंति । तण्ण घडदे, 'कायलेस्सियाए लग्गों' ति उवरि भण्णमाणसुत्तेण सह विरोहादो । ण च सयंभुरमणसमुद्दबाहिरवेइयाए संबद्धा तिण्णि वि वादवलया, तिरियलोगविवखंभरस एमरज्जुपमाणादो ऊणत्तप्पसंगादो । तं कधं णव्वदे ? जंबूदीवजोयणलक्खविखंभदो दुगुणक्कमेण गदसव्वदीव-सागरविक्खंभेसु मेलाविदेसु जगसेडीए सत्तमभागाणुप्पत्तीदो । तं पि कधं णव्वदे ? रूवाहियदीव-सागररूवाणि विरलिय विगं करिय अण्णोण्णब्भत्थं कादूण तत्थ तिण्णि रुवाणि अवणिय जोयणलक्खेण गुणिदे दीवसमुद्दरुद्धतिरियलोगखेत्तायामुप्पत्तीदो । ण च एत्तियो चेव तिरियलोगविक्खंभो, जगसेडीए शंका-सर्वबाह्य समुद्र ही है, यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-' स्वयम्भूरमण समुद्र के बाह्य द्वीपमें स्थित' ऐसा न कहकर स्वयम्भूरमण समुद्र के बाह्य तटपर स्थित' ऐसा जो सूत्र है उसीसे वह जाना जाता है। अपनी बाह्य वेदिका पर्यन्त स्वयम्भूरमण समुद्र है, उसके बाह्य तटसे अभिप्राय समुद्र के पर भूभागप्रदेशका है। वहांपर स्थित, ऐसा ग्रहण करना चाहिये। स्वयम्भूरमण समुद्र के बाह्य तटका अर्थ उसकी अंगभूत बाह्य येदिका है, वहां स्थित महामत्स्य, ऐसा कितने ही आचार्य कहते हैं। किन्तु वह घटित नहीं होता, क्योंकि, वैसा स्वकिार करने पर आगे कहे जानेवाले 'तनुवातवलयसे संलग्न हुआ' इस सूत्रके साथ विरोध आता है। कारण कि स्वयम्भूरमण समुद्र की बाह्य वेदिकासे तीनों ही वातवलय सम्बद्ध नहीं हैं, क्योंकि, वैसा होने पर तिर्यग्लोक सम्बन्धी विस्तारप्रमाणके एक राजुसे हीन होने का प्रसंग आता है। शंका-यह कैसे जाना जाता है ? समाधान- चूंकि जम्बूद्वीप सम्बन्धी एक लाख योजन प्रमाण विस्तारकी अपेक्षा दुगुणे क्रमसे गये हुए सब द्वीप-समुद्रोंके विस्तारोको मिलाने पर जगश्रेणिका सातवां भाग (राजु) उत्पन्न नहीं होता है, अतः इसीसे जाना जाता है कि तीनों वातवलय स्वयम्भुरमण समुद्रकी बाह्य वेदिकासे सम्बद्ध नहीं है। शंका - वह भी कैसे जाना जाता है ? । समाधान-एक अधिक द्वीप-समुद्र सम्बन्धी रूपोंका विरलन कर दुगुणा करके परम्पर गुणित करने पर जो प्राप्त हो उसमें तीन रूपोंको कम करके एक लाख योजनसे गुणित करनेपर द्वीप-समुद्रों द्वारा रोके गये तिर्यग्लोक क्षेत्रका आयाम उत्पन्न होता है, अतः इसीसे जाना जाता है कि उक्त प्रकारसे जगश्रेणिका सातवां भाग नहीं उत्पन्न होता। १ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-काप्रत्योः 'समुद्दयबाहिरे'; ताप्रतौ 'समुद्दे बाहिरे' इति पाठः। २ षट्. भा. ३ पृ. ३७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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