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________________ ४, २, ६, २६८. ] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ट्ठिदिबंधज्झवसाणपरूवणा [३५९ दिवडगुणहाणिमत्तं होदि तत्थ संदिट्टीए सव्वज्झवसाणहाणपमाणमेदं १५६० । पुणो एदम्मि उक्कस्सहिदिबंधज्झवसाणेहि भागे हिदे दिवड्डगुणहाणिपमाणमागच्छदि । तं च एवं १९५। ३२ । पुणो एदं जहण्णट्ठिदिअज्झवसाणभागहारमिच्छामो ति सव्वज्झवसाणदुगुणवडि-हाणिसलागाओ विरलिय बिगुणिय अण्णोण्णभासे कदे जो उप्पण्णरासी तेण रासिणा १६ दिवगुणहाणीए गुणिदाए जहण्णहिदिअज्झवसाणभागहारो होदि १९५।२। पुणो एदेण सव्वज्झवसाणेसु अवहिरिदेसु जहण्णहिदिअज्झवसाणमागच्छदि १६ । पुणो एदस्सुवरि भागहारो विसेसहीणकमेण जाणिदूण णेदवो जाव एगदुगुणवड्डिपमाणमेत्तं चडिदो त्ति । पुणो तप्पमाणेण अवहिरिजमाणे पुव्वभागहारो अद्ध होदि । कुदो ? एगगुणवड्डि चडिदो त्ति एगरूवं विरलिय बिगं करिय अण्णोण्णब्भत्थं कादूण पुवभागहारे ओवट्टिदे तदद्धवलंभादो १९५। ४ । पुणो एदस्सुवरि भागहारो जाणिदूण णेदव्वो जाव उक्कस्सहिदिअज्झवसाणे त्ति । पुणो तप्पमाणेण सव्वदव्वे अवहिरिजमाणे किंचूणदिवडगुणहाणिहाणंतरेण अवहिरिजदि। ___ एवं छण्णं कम्माणं भागहारपरूवणा परवेदव्वा । एवं आउअस्स वि वत्तव्वं । णवरि जहण्णहिदिअज्झवसाणपमाणेण सव्वज्झवसाणहाणाणि असंखेजलोगमेत्तकालेण अवहिरिजंति तं जहा-आउअस्स अज्झवसाणगुणगारो अवहिदो त्ति के वि आइरिया भणंति । यह है-१५६० । इसमें उत्कृष्ट स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानोंका भाग देनेपर डेढ गुणहानि प्रमाण आता है। वह यह है-३५ । इस जघन्य स्थितिसम्बन्धी अध्यवसानोके भागहारको लानेकी इच्छासे सब अध्यवसानस्थानोंकी दुगुणवृद्धि-हानिशलाकाओंका विरलन करके दुगुणित कर परस्पर गुणा करनेपर जो राशि उत्पन्न हो (१६) उससे डेढ गुणहानिको गुणित करनेपर जघन्य स्थितिके अध्यवसानस्थानोंका भागहार होता है-३५४१६=१३५ । इसका सब अध्यवसानस्थानों में भाग देनेपर जघन्य स्थिर्तिके अध्यवसानस्थानोंका प्रमाण आता है-१५६०१३५=१३:४३५१६। इसके आगे एक दगुणवृद्धि प्रमाण मात्र जाने तक भागहारको विशेषहीन क्रमसे जानकर ले जाना चाहिये। फिर उक्त प्रमाणसे अपहृत करनेपर पूर्व भागहार आधा होता है, क्वोंकि, एक गुणहानि आगे गये हैं, अतः एक अंकका विरलन करके दुगुणा कर परस्पर गुणा करनेपर जो प्राप्त हो उससे पूर्व भागहारको अपवर्तित करनेपर उसका अर्ध भाग लब्ध होता है१५+२=18५। फिर इसके आगे उत्कृष्ट स्थितिके अध्यबसानस्थानोंतक भागहारको जानकर ले जाना चाहिये। उसके प्रमाणसे सब द्रव्यको अपहृत करनेपर वह कुछ कम डेढ गुणहानिस्थानान्तरकालसे अपहृत होता है। इस प्रकार छह कमाके भागहारकी प्ररूपणा करना चाहिये। इसी प्रकार आयकर्मके भी भागहारकी प्ररूपणा करना चाहिये । विशेष इतना है कि सब अध्यवसानस्थान जघन्य स्थितिसम्बन्धी अध्यवसानस्थानोंके प्रमाणसे असंख्यात लोक मात्र कालके द्वारा ताप्रती ' सम्वझवसाणपमाणमेदं ' इति पाठः । २ प्रतिषु 'अवहिरिजदेसु' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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