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________________ ३५० ] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ६, २४७. तिण्णि चेव अणियोगद्दाराणि किमट्ट परूविदाणि ? ण, चउत्यादिअणियोगद्दाराणं संभवाभावादो। पगणणाए णाणावरणीयस्स जहणियाए ट्ठिदीए द्विदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणि असंखेजा लोगा ॥ २४७॥ जहण्णहिदी णाम धुवहिदी, तत्तो हेट्ठा हिदिबंधाभावादो । तत्थ हिदिबंधज्ज्ञवसाणहाणाणि असंखेजलोगमेत्ताणि अणंतभागवड्डि-असंखेजभागवड्डि-संखेजभागवड्डि-संखेजगुणवडि-असंखेजगुणवड्डि-अणंतगुणवड्डीहि णिप्पण्णअसंखेजलोगमेत्तछट्ठाणाणि होति । कधमेक्कस्स जहण्णहिदिबंधज्झबसाणहाणस्स अणंतो सव्वजीवरासी भागहारो कीरदे ? ण, जहण्णहिदिबंधज्झवसाणहाणे वि असंतसव्वजीवरासिमेत्तअविभागपडिच्छेदुवलंभादो। . बिदियाए ट्ठिदीए ट्ठिदिबंधज्झवसाणट्ठाणाणि असंखेजा लोगा ।। २४८॥ ___ बिदियाए टिदीए त्ति वुत्ते समउत्तरमवहिदी घेत्तव्वा । कधं तिस्से बिदियत्तं १ ण, शंका-तीन ही अनुयोगद्वार किस लिये कहे हैं ? समाधान नहीं, क्योंकि चतुर्थादिक अन्य अनुयोगद्वारोंकी सम्भावनाका अभाव है। प्रगणना अनुयोगद्वारका अधिकार है। ज्ञानावरणीयकी जघन्य स्थितिके स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यात लोक प्रमाण हैं ॥ २४७॥ जघन्य स्थितिका अर्थ वस्थिति है, क्योकि, उसके नीचे स्थितिबन्धका अभाव है । उसमें स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यात लोक प्रमाण हैं। वे अनन्तभागवृद्धि, असंख्यातभागवृद्धि संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणवृद्धि और अनन्तगुणवृद्धि, इन छह वृद्धियोंसे उत्पन्न असंख्यातं लोक मात्र छह स्थानोंसे संयुक्त होते हैं। शंका-अनन्त सर्व जीव राशिको एक जघन्य स्थितिबन्धाध्यवसानस्थानका भागहार कैसे किया जा रहा है ? समाधान नहीं, क्योंकि एक जघन्य स्थितिबन्धाध्यवसानमें भी अनन्त सब जीवराशि प्रमाण अविभागप्रतिच्छेद पाये जाते हैं। द्वितीय स्थितिमें स्थितिबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यात लोक प्रमाण हैं ॥ २४८॥ 'बिदियाए ट्ठिदीए' ऐसा कहनेपर एक समय अधिक अवस्थितिका ग्रहण करना चाहिये। शंका-इसको द्वितीय स्थिति कहना कैसे उचित है ? समाधान नहीं, क्योंकि, ध्रुवस्थितिसे एक समय अधिक स्थिति पृथक् पायी १ ठिइबंधे ठितिबंधे अज्झवसाणाणसंखया लोगा। हस्सा वे (वि) सेसवुड्डी आऊणमसंखगुणवडी ॥ क. प्र. १,८७.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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