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________________ ४, २, ६, २०३. ) वेयणमहाहियारे वैयणकालविहाणे ट्ठिदिबंधज्यवसाणपरूवणा [३२९ . जवमज्झजीवपमाणेण सव्वजीवा केवचिरेण कालेण अपहिरिजंति ? तिण्णिगुणहाणिहाणंतरेण । छण्णं जवाणं जीवे अप्पप्पणो जवमज्झजीवपमाणेण कदे किंचूणतिण्णिगुणहाणिमेता होति । संदिट्ठीए सव्वदव्वमहतीसाहियछस्सदमेत्तं ६३८ । किंचूणतिण्णिगुणहाणीओ एदाओ ३१९।३२ । एदाहि सव्वदव्वे भागे हिदे जवमज्झजीवपमाणं होदि ६४ । ' - पुणो छण्णं जवाणं जवमज्झस्स हेटिमजहण्णहिदिजीवपमाणेण सव्वजीवा केवचिरेण कालेण अवहिरिजंति ? तिण्णिगुणहाणिगुणिदपलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तेण । तं जहा-- जीवजवमज्झस्स हेहिमणाणागुणहाणिसलागाओ (२) विरलिय बिगुणिय अण्णोण्णभत्थे कदे पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो उप्पजदि (४)। पुणो एदेण किंचूणतिसु गुणहाणीसु गुणिदासु पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तगुणहाणिपमाणं होदि (३१९।८)। पुणो .एदेण सव्वदव्वे भागे हिदे जहण्णहिदिजीवपमाणं होदि (१६)। पुणो एदं परिहाणि कादूण णेदव्वं जाव पढमगुणहाणिचरिमटिदिजीवेत्ति । पुणो बिदियगुणहाणिपढमहिदिजीवपमाणेण सव्वहिदिजीवा केवचिरेण काळेण अवहिरिजंति ? जहण्णहिदिजीवभागहारादो अद्धमत्तेण । कुदों ? एगदुगुणवडि चडिदो त्ति एगरूवं विरलिय बिगुणिय अण्णोण्णन्मत्थं कादूण पुवभागहारे ओवट्टिदे तद पत्तीदो - यवमध्यके जीवोंके प्रमाणसे सब जीव कितने कालके द्वारा अपहृत होते हैं ? उक्त प्रमाणसे वे तीन गुणहानिस्थानान्तरकालके द्वारा अपहृत होते हैं। छह यवोंके जीवोंको अपने अपने यवमध्यजीवोंके प्रमाणसे करनेपर वे कुछ कम तीन गुणहानियोंके बराबर होते हैं। संदृष्टिमें सब द्रव्यका प्रमाण छह सौ अदतीस (६३८) है । कुछ कम तीन गुणहानियां ये हैं--१-। इनका सब द्रव्यमें भाग देनेपर यवमध्यके जीवोंका प्रमाण होता है६३८३१९ - २०४१६४३३-६४ । छह यवोंके यवमध्यसे नीचेकी जघन्य स्थितिके जीवोंके प्रमाणसे सब जीव कितने कालके द्वारा अपहृत होते हैं ? उक्त प्रमाणसे वे तीन गुणहानियोंसे गुणित पल्योपमके असंख्यातवे भाग मात्र कालके द्वारा अपहृत होते हैं। यथा जीवयवमध्यके नीवेकी नानागुणहानिशलाकाओं (२) का विरलन करके द्विगुणित कर परस्पर गुणित करनेपर पल्योपमका असंख्यातवां भाग (२x२-४) उत्पन्न होता है। इसके द्वारा कुछ कम तीन गुणहानियोंको गुणित करनेपर पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र गुणहानियोंका प्रमाण होता है-- १४-32.इसका सब द्रव्यमें भाग जघन्य स्थितिके जीवोंका प्रमाण होता है-६३८१५१. ४ १६ । इसकी हानि करके प्रथम गुणहानि सम्बन्धी अन्तिम स्थितिके जीवों तक ले जाना चाहिये। .... द्वितीय गुणहानिकी प्रथम स्थितिके जीवोंके प्रमाणसे सब स्थितियोंके जीव कितने कालके द्वारा अपहत होते हैं? वे उक्त प्रमाण से जघन्य स्थिति सम्बन्धी जीवोंके भागहारके अर्ध भाग मात्रसे अपहत होते हैं, क्योंकि, एक दुगुणवृद्धि आगे गये हैं, अतः एक अंकका विरलन करके दुगुणा करके परस्पर गुणित करनेपर जो प्राप्त हो उससे पूर्व छ. ११-४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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