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________________ ३०४ छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, १६४. ऊणा होदि, समऊणुक्कस्साबाधाए तत्थ धुवभावेण अवठ्ठाणदसणादो। पुणो बिदियआबाधाकंडयमेत्तमोसरिय बंधे उक्कस्साबाहा दुसमऊणा होदि । कुदो ? समउत्तरहिदिबंधणिसेगहिदीहि सह समऊणहिदिबंधणिसेगट्ठिदीणं समाणत्तुवलंभादो। पुणो एत्तो समऊणदुसमऊणादिकमेण जाव पलिदोवमस्स असंखेजदिभागेणूणहिदि बंधदि ताव दुसमऊणतिण्णिवाससहस्समेत्ता आबाहा होंदि । संपुण्णेसु आबाहाकंदएसु परिहीणेसु तिसमऊणतिण्णिवाससहस्समेत्तआबाहा होदि । एवं समऊणाबाहाकंदयमेत्ताओ हिदीयो जाव परिहायति ताव एक्का चेव आबाहा होदूण पुणो संपुण्णेगाबाहाकंदयमेत्तहिदीसु परिहीणासु पुविलाबाहादो संपहियाबाहा समऊणा होदि ति सव्वत्थ वत्तव्वं । एदेण कमेण ओदारेदव्वं जाव जहण्णाबाहा जहण्णणिसेयहिदी च चिट्ठदि त्ति । जहण्णटिदिबंधादो समउत्तरादिकमेण जाव समऊणाबाहाकंदयमेत्तहिदीयो बड्डिदूण बंधदि ताव आबाहा जहणिया चेव होदि । पुणो संपुण्णमेगमाबाहाकंदयमेत्तं बढिदूण बंधमाणस्स आबाहा जहण्णाबाहादो समउत्तरा होदि । आबाहावड्डिदसमए णिसेगहिदी ण वढ्ढदि, अक्कमेण दोणं हिदीणं वड्डिप्पसंगादो । दोसु समएसु जुगवं वडिदेसु को उत्तरोत्तर कम होती जाती है, क्योंकि, उनमें एक समय कम उत्कृष्ट आवाधाका ध्रुष स्वरूपसे अवस्थान देखा जाता है। पश्चात् द्वितीय आबाधाकाण्डकके बराबर स्थितिबन्धस्थान नीचे हटकर जो स्थितिबन्ध होता है, उसमें उत्कृष्ट आबाधा दो समय कम होती है, क्योंकि, एक समय अधिक स्थितिबन्धोंकी निषेक स्थितियोंके साथ एक समय कम स्थितिबन्धकी निषेकस्थितियोंकी समानता पायी जाती है । इसके आगे एक समय कम, दो समय कम, इत्यादि क्रमसे जब तक पल्योपमके असंख्यातवें भागसे हीन स्थितिको बांधता है तब तक आवाधा दो समय कम तीन हजार वर्ष प्रमाण होती है । सम्पूर्ण आवाधा-काण्डकोंके हीन होनेपर आबाधा तीन समय कम तीन हजार वर्ष मात्र होती है। इस प्रकार जब तक एक समय कम आबाधाकाण्डकके बराबर स्थितियां हीन होती हैं तब तक एक ही आबाधा होती है। पश्चात सम्पूर्ण एक आबाधाकाण्डकके बराबर स्थितियोंके हीन हो जानेपर पहिलेकी आबाधासे इस समयकी आबाधा एक समय कम होती है, ऐसा सर्वत्र कथन करना चाहिये । इस क्रमसे जब तक जघन्य आवाधा और जघन्य निषेकस्थिति प्राप्त नहीं होती तब तक नीचे उतारना चाहिये। जघन्य स्थितिबन्धसे एक समय अधिक, दो समय अधिक, इत्यादि क्रमसे जब तक एक समय कम आबाधाकाण्डकके बराबर स्थितियां वृद्धिंगत होकर बन्ध होता है तब तक आबाधा जघन्य ही होती है । पुनः सम्पूर्ण एक आबाधाकाण्डकके बराबर सि वृद्धिगत होनेपर स्थितिको बाँधनेवाले जीवके जघन्य आबाधाकी अपेक्षा एक समय अधिक आबाधा होती है । आबाधाकी वृद्धिके समयमें निषेकस्थितिकी वृद्धि नहीं होती, क्योंकि, वैसा होनेपर एक साथ दोनों स्थितियोंकी वृद्धिका प्रसंग आता है। शंका-दो समयोंकी एक साथ वृद्धि होनेपर क्या दोष है ? १ प्रतिषु परिक्षीणेसु' इति पाठः । २ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-का-ताप्रतिषु ' वडिदे' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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