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________________ २७६] छक्खंडागमे वेयणाखंड - [४, २, ६, १४४ उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया ॥ १४४॥ केत्तियमेतेण ? समऊणजहण्णाबाहामेत्तेण । ठिदिबंधट्टाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥१४५॥ कुदो १ समऊणजहण्णहिदिबंधेगृणपुवकोडिग्गहणादो। उक्कस्सओ द्विदिबंधो विसेसाहिओ ॥ १४६॥ केत्तियमेत्तेण ? समऊणजहण्णहिदिबंधमत्तेण ।। पंचिंदियाणमसण्णीणं चउरिदियाणं तीइंदियाणं बीइंदियाणं पज्जत्त-अपज्जत्तयाणं सत्तण्णं कम्माणं आउववज्जाणमाबाहट्टाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि थोवाणि ॥१४७॥ कुदो १ आवलियाए संखेजदिभागप्पमाणत्तादो। उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है ॥ १४४॥ वह कितने मात्र विशेषसे अधिक है ? वह एक समय कम जघन्य भावाधा मात्रले अधिक है। स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ १४५ ॥ क्योंकि, एक समय कम जघन्य स्थितिबन्धसे हीन पूर्वकोटिका ग्रहण है । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ १४६ ॥ वह कितने मात्रसे अधिक है ? वह एक समय कम जघन्य स्थितिबन्धके प्रमाणसे विशेष अधिक है। - असंज्ञी पंचेन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और द्वीन्द्रिय पर्याप्तक-अपर्याप्तक जीवोंके आयुको छोड़कर शेष सात कर्मोंके आबाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य व स्तोक हैं ॥ १४७॥ क्योंकि, वे आवलीके संख्यातवें भाग प्रमाण हैं। १ तथाऽसंज्ञिपंचेन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-द्वीन्द्रिय-सूक्ष्मबादरैकेन्द्रियेषु पर्याप्तापर्याप्तेष्वायुर्वर्जानां सप्तानां कर्मणां प्रत्येकमबाधास्थानानि कंडकानि च स्तोकानि परस्परं च तुल्यानि, आवलिकाऽसंख्येयभागगतसमयप्रमाणत्वात् (१-२) । ततो जघन्याबाधाऽसंख्येयगुणा, अन्तर्मुहूर्त प्रमाणस्वात् (३)। ततोऽप्युत्कृष्टाबाधा विशेषाधिका, जघन्याबाधाया अपि तत्र प्रवेशात (४)। ततो द्विगुणहीनानि (हानि) स्थानान्यसंख्येयगुणानि (५)। तत एकस्मिन् द्विगुणहान्योरन्तरे निषेकस्थानान्यसंखयेयगुणानि (६)। ततोऽर्थेन कंडकमसंख्येयगुणम् (७)। ततोऽपि स्थितिबन्धस्थानान्यसंख्येयगुणानि, पल्योपमा (म) संख्येयभागगतसमयप्रमाणत्वात् (८)। ततोऽपि जघन्यस्थितिबन्धोऽसंख्येयगुणः (९)। ततोऽप्युत्कृष्टस्थितिबन्धो विशेषाधिकः, पस्योपमासंख्येयभागेनाभ्यधिकत्वादिति (१०)। क. प्र. (म. टी.) १,८६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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