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________________ २३२] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, ७७. तस्सेव पज्जत्तयस्स उक्कसओ हिदिबंधो विसेसाहिओ॥७७॥ . बीइंदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सहिदिबंधादो पलिदोवमस्स संखेजदिभागमेत्तहिदिबंधहाणाणि उवरि अब्भुस्सरिदूण बीइंदियपजत्तयस्स उक्कस्सहिदिबंधावट्ठाणादो। तीइंदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ ट्टिदिबंधो विसेसाहिओ॥७८ ।। कत्तियमेत्तो विसेसो ? पलिदोवमस्स संखेजदिभागेणूणपणुवीससागरोवममेत्तो । तीइंदियअपज्जत्तयस्स जहण्णओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ ॥७९॥ केत्तियमेत्तेण ? पलिदोवमस्स संखेजदिभागमेत्तेण । कुदो ? तीइंदियअपज्जत्तजहण्णहिदिबंधादो पलिदोवमस्स संखेजदिभागमेत्तहिदिबंधहाणाणि हेट्ठा ओसरियूण तीइंदियपज्जत्तयस्स जहण्णटिदिबंधावट्ठाणादो। तस्सेव उक्कस्सट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ ॥ ८॥ केत्तियमेत्तेण ? पलिदोवमस्स संखेजदिभागपमाणसगवीचारहाणमेत्तेण । तीइंदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ ॥ ८१॥ उसी पर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ ७७ ॥ क्योंकि, द्वीन्द्रिय पर्याप्तकके उत्कृष्ट स्थितिबन्धसे पल्योपमके संख्यातवें भाग मात्र स्थितिबन्धस्थान ऊपर जाकर द्वीन्द्रिय पर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध अवस्थित है। . त्रीन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ ७८॥ विशेषका प्रमाण कितना है ? उसका प्रमाण पत्योपमके संख्यातवें भागसे हीन पच्चीस सागरोपम प्रमाण है। त्रीन्द्रिय अपर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ ७९ ॥ कितने मात्रसे वह विशेष अधिक है ? वह पल्योपमके संख्यातवें भाग मावसे अधिक है, क्योंकि, त्रीन्द्रिय अपर्याप्तकके जघन्य स्थितिवन्धसे पल्योपमके संख्यात भाग मात्र स्थितिबन्धस्थान नीचे जाकर त्रीन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध अवस्थित है। उसीका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ ८० ॥ वह कितने प्रमाणसे अधिक है ? वह पल्योपमके संख्यातवें भाग मात्र अपने वीचारस्थानोंके प्रमाणसे अधिक है। त्रीन्द्रिय पर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है ॥ ८१॥ १ ततोऽपि पर्याप्तत्रीन्द्रियस्य जघन्यः स्थितिबन्धः संख्येयगुणः (१४) । क. प्र. (मलय.) १, ८०-८१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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