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________________ ४, २, ६, ५०.] वेयणयहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्ठाणपरूवणा (१९९ विसेसो विसेसाहिओ। हिदिबंधहाणाणि एगरूवाहियाणि । मोहणीयस्स हिदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो । द्विदिबंधट्ठाणाणि एगवाहियाणि । बेइंदियअपज्जत्ताणं णामागोदाणं हिदिबंधट्ठाणविसेसो असंखेज्जगुणो। हिदिबंधट्ठाणाणि एगरूवाहियाणि । चदुषणं कम्माणं हिदिबंधहाणविसेसो विसेसाहिओ । द्विदिबंधहाणाणि एगरूहियाणि । मोहणीयस्स हिदिबंधहाणविसेसो संखेज्जगुणो। हिदिबंधहाणाणि एगरूवाहियाणि । तस्सेव पउजत्ताणं णामा-गोदाणं हिदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो । हिदिबंधहाणाणि एगरूवाहियाणि । चदुण्णं कम्माणं द्विदिबंधहाणविसेसो विसेसाहिओ । हिदिबंधट्ठाणाणि एगरूवाहियाणि । मोहणीयस्स हिदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो। हिदिबंधट्ठाणाणि एगरूवाहियाणि । तेइंदियअपजत्ताणं णामा-गोदाणं हिदिबंधट्ठाणविसेसो संखेजगुणो । हिदिबंधटाणाणि एगरूवाहियाणि । चदुण्णं कम्माणं हिदिबंधट्ठाणूविसेसो विसेसाहिओ। हिदिबंधट्ठाणाणि एगख्वाहियाणि । मोहणीयस्स हिदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो। हिदिबंधट्ठाणाणि एगरूवाहियाणि । तस्सेव पज्जत्ताणं णामा-गोदाणं हिदिबंधटाणविसेसो संखेजगुणो। हिदिबंधहाणाणि एगरूवाहियाणि । चदुण्णं कम्माणं हिदिबंधट्टाणविसेसो विसेसाहिओ। टिदिबंधट्ठाणाणि एगवाहियाणि । मोहणीयस्स हिदिबंधट्ठाणविसेसो संखेजगुणो । ठिदिबंधहाणाणि एगरूवाहियाणि । चउरिंदियअपज्जत्ताणं णामा-गोदाणं बन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । मोह. नीयका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकोंके नाम व गोत्रका स्थितिबन्धस्थानविशेष असंख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। चार कर्मोंका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । मोहनीयका स्थितिवन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। उसीके पर्याप्तकके नाम व गोत्रका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूएसे विशेष अधिक हैं । चार कर्मोंका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है। स्थितिबन्ध स्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । मोहनीयका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। श्रीन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। चार कर्मोंका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। मोहनीयका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उसीके पर्याप्तकके नाम व गोत्रका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। चार काँका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। मोहनीयका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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