SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 207
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८२.] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, ५०. विसेसाहिओ। सुहुमेइंदियपजत्तयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । बादरेइंदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। बेइंदियपजत्तयस्स जहण्णओ हिदिबंधो संखेजगुणो । तस्सेव अपज्जत्तयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव पजत्तयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तेइंदियपजत्तयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव अपज्जत्तयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पज्जत्तयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। चउरिंदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । सेसतिण्णिपदाणं बेइंदियभंगो । असण्णिपंचिंदियपजत्तयस्स जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो । सेसतिपिंपदाणं बेइंदियभंगो । सण्णिपंचिंदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो। तस्सेव अपजत्तयस्स जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो। तस्सेव अपज्जत्तयस्स हिदिबंधहाणविसेसो संखेजगुणो । हिदिबंधटाणाणि एगरूवाहियाणि । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव पजत्तयस्स हिदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो । हिदिबंधट्ठाणाणि एगरूवाहियाणि । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। एवमव्वोगाढमप्पाबहुअं समत्तं । मूलपयडिअप्पाबहुअं दुविहं- सत्थाणं परत्थाणं चेदि । तत्थ सत्थाणे पयदं उत्कृष्ट स्थितियन्ध विशेष अधिक है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। द्वीन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उसीके अपर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। त्रीन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । शेष तीन पदोंकी प्ररूपणा द्वीन्द्रियके समान है। असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। शेष तीन पदोंकी प्ररूपणा द्वीन्द्रियके समान है। संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उसीके अपर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उसीके अपर्याप्तकका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे अधिक हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे अधिक हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इस प्रकार अव्योगाढअल्पबहुत्व समाप्त हुआ। मूलप्रकृतिअल्पबहुत्व दो प्रकार है- स्वस्थान अल्पबहुत्व और परस्थान अल्पबहुत्व । १ प्रतिषु 'सेस तिण्णि-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy