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________________ ४, २, ६, ५०.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्ठाणपरूवणा १६९ सण्णिपंचिंदियअपजत्तयस्स आउअस्स सव्वत्थोवा जहणिया आबाहा। आबाहाहाणंविसेसो संखेजगुणो । आबाहाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । णामा-गोदाणं जहण्णिया आबाहा संखेजगुणा । चदुण्णं कम्माणं जहणिया आबाहा विसेसाहिया । माहायस्स जहणिया आबाहा संखेजगुणा । णामा-गोदाणमाबाहाहाणविसेसो संखेजगुणो । आबाहाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया। चदुण्णं कम्माणमाबाहाहाणविसेसो विसेसाहिओ। आबाहाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया। मोहणीयस्स आबाहाहाणविसेसो संखेजगुणो। आबाधाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । एवं सत्याणप्पाबहुगं समत्तं । परत्थाणे पयदं-सव्वत्योवो सुहुमेइंदियअपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणबाहाहाणविसेसो। आबाहाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । चदुण्णं कम्माणमाबाहाहाणविसेसो विसेसाहिओ । आबाहाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स आबाहाहाणविसेसो संखेनगुणो । आबाहाहाणाणि एगहवेण विसेसाहियाणि । बादरेइंदियअपजत्तयस्स णामागोदाणमाबाहाहाणविसेसो संखेजगुणो । आबाहाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । चदुण्णं संशी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकके आयुकी जघन्य आबाधा सबसे स्तोक है। आबाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है। आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं आबाधा विशेष अधिक है । नाम व गोत्रकी जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है। चार कर्मों की जघन्य आबाधा विशेष अधिक है । मोहनीयकी जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है। नाम व गोत्रका आबाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है। आवाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक हैं । चार कर्मोंका आबाधास्थानविशेष विशेष अधिक है । आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है । मोहनीयका आवाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है । आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। उत्कृष्ट आवाधा विशेष अधिक है । इस प्रकार स्वस्थान अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। अब परस्थान अल्पबहुत्वका प्रकरण है- सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका आवाधास्थानविशेष सबसे स्तोक है । आवाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। चार कर्मोंका आबाधास्थानविशेष विशेष अधिक है। आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । मोहनीयका आवाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है । आबाधास्थान एक रूसे विशेष अधिक हैं । बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका आबाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है । आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । चार कर्मोंका आबाधास्थान १ ताप्रती 'जह• आबाहा। [आबाहा] ढाण-' इति पाठः। छ. ११-२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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