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________________ ४, २, ६, १०. ] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधाणपरूवणा [ १५५ विस संखे गुणो । द्विदिबंधाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तस्सेव चदुष्णं कम्माणं द्विदिबंधट्ठाणविसेसो विसेसाहिओ । ट्ठदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तस्सेव मोहणीयस्स द्विदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो । द्विदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि। बादरएइंदियपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं द्विदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो । द्विदिबंध - द्वाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तस्सेव चदुष्णं कम्माणं द्विदिबंधट्ठाणविसेसो विसेसाहिओ । द्विदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तस्सेव मोहणीयस्स विदिबंधद्वाणविसेसो संखेज्जगुणो । द्विदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । [ 'बेइंदियअपज्जत्तयस्स गामा-गोदाणं द्विदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो । दिबंधाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तस्सेव चदुण्णं कम्माणं द्विदिबंधट्ठाणविसेसो विसेसाहिओ । द्विदिबंधाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तस्सेव मोहणीयस्स द्विदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो । द्विदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । ] तस्सेव पज्जत्तयस्स णामागोदाणं द्विदिबंधाणविसेसो संखेज्जगुणो । द्विदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तस्सेव चदुण्णं कम्माणं द्विदिबंधट्ठाणविसेसो विसेसाहिओ । हिदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण बिसेसाहियाणि । तस्सेव मोहणीयस्स द्विदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो । ट्ठिदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तेइंदियअपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं द्विदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्ज है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उसीके चार कर्मोंका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उसीके मोहनीयका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपले विशेष अधिक हैं । बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रका स्थितिबन्धस्थान विशेष संख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उसीके चार कर्मोका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उसीके मोहनीयका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । [ द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उसीके चार कर्मोंका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपले विशेष अधिक हैं । उसीके मोहनीयका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं ।] उसीके पर्याप्तक के नाम व गोत्रका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उसीके चार कर्मोंका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उसीके मोहनीयका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । त्रीन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम व गोत्र १ कोष्ठकस्थोऽयं पाठ अ-आ-काप्रतिषु नोपलभ्यते, ताप्रतौ तूपलभ्यते स कोष्टकस्थ एव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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