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________________ १५] छक्खंडागमे वैयणाखंड . [१, २, ३, ५.. हिदिबंधडाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स हिदिबंधवाणविससो संखेज्ज. गुणो । हिदिवंधठ्ठामाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । णामा-गोदाणं' जहण्णओ हिदिवंधो संखेज्जगुणो। उक्कस्सओ हिदिबंधी विसेसाहिओ। चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। उक्कस्सओ द्विदिबंधो विसेसाहिओ । मोहणीयस्स जहण्णओ हिदि. बंधो संखज्जगुणो। उक्कस्सओ द्विदिबंधो विसेसाहिओ।। __ एवं बेइंदियपज्जत्तयस्स तेइंदिय-चरिंदियपज्जत्तापज्जत्ताणं असण्णिपंचिंदियअपज्जत्ताणं च सत्थाणप्पाबहुगं कायव्वं । असण्णिपंचिंदियपज्जत्तयस्स सव्वत्थोवो आउअस्स जहण्णओ द्विदिवंधो । हिदिबंधट्ठाणविसेसो असंखेज्जगुणो। कारणं उवरि उच्चिहिदि । विदिबंधडाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सओ द्विदिबंधो विसेसाहियो। णामा गोदाण हिदिबंधहाणविसेसो असंखेज्जगुणो। द्विदिबंधट्ठाणाणि एगवेण विसेसाहियाणि । चदुण्णं कम्माणं द्विदिबंधट्ठाणविसेसो विसेसाहिओ। द्विदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स हिदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो। द्विदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । णामागोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो। उक्स्स ओ द्विदिबंधो विसेसाहियो। चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहियो । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहियो । मोहणीयस्स जहण्णओ रूपले विशेष अधिक हैं। उससे मोहनीय कर्मका स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणा है। उससे स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। उससे नाम व गोत्र कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। उससे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उससे चार काँका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उससे उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उससे मोहनीय का जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। उससे उस्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। . इसी प्रकार द्वीन्द्रिय पर्याप्तक, त्रीन्द्रिय व चतरिन्द्रिय पर्याप्तक-अपर्याप्तक तथा असंही पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके भी स्वस्थान अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिये । असंही पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके आयु कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। उससे स्थितिबन्धस्थानविशेष असंख्यातगुणा है। कारण आगे कहेंगे । उससे स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। नाम व गोत्र कर्मका स्थितिबन्धस्थानविशेष असंख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। चार कर्मोंका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। मोहनीय कर्मका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। नाम व गोत्र कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। चार कर्मीका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। मोहनीय कर्मका , अ-आपत्योः । उवरिमविहिदि ', कापतौ — उवरिमविहि ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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