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छक्खंडागमे वैयणाखंड
( ४, २, ६, ९.
तदो वदिरित्तं तव्वदिरित्तं, उक्कस्सट्ठिदिबंधवदिरित्ता' अणुक्करसट्ठिदिवेयणा होंदि त्ति उत्तं होदि । सा च अयप्पयारा त्ति तिस्से सामिणो वि अणेयविहा होंति । तेर्सि परूवणं कस्सामा । तं जहा - तिण्णिवाससहरसमाबाधं काढूण तीससागरोवमकोडा कोडिद्विदीए पबद्ध ए उक्करसट्ठिदी होदि । पुणे। अण्णेण जीवेण समऊणती संसागरोवमकोडाकोडी बद्धासु पढममणुक्कस्सद्वाणं होदि । एत्थ उक्कस्सट्ठिदिपमाणं संदिट्ठीए चत्तालीसरूवाहियद्वसदमेत्तं | २४० || अणुक्क सुक्कस्सट्ठिदीए गुणचालीसरूवा हिय दुसदमेत्ता | २३९ | | तदो अण्णेण जीवेण दुसमऊणुक्कसहिदीए पबद्धाए बिदियमणुक्कस्साणं होदि । तस्स पमाणमेदं / २३८ | | एदेण कमेण आबाधाकंद एणूण उक्कस्सट्ठिदीप पबद्धाए अण्णमणुक्कस्सद्वाणं होदि । एत्थ आबाधाकंदयपमाणं तीसरुवाणि | ३० | | एदम्मि उक्कस्सट्ठिदिम्मि सोहिदे तदित्थट्ठिदिबंध द्वाणमेत्तियं होदि | २१० | |
संपहि उक्कस्साबाहा समऊणा होदि । कुदो ? आवाहाचरिमसमए पढमणिसेय - णिवादादो । संदिट्ठीए उक्कस्साबाधापमाणमट्ठ ! ८ || पुणो समयाहियआबाधा कंद एणूणउक्कसहिदीए पबद्धाए सो अण्णो अणुक्कस्सद्वाणाबियप्पो होदि | २०९ | | एंद्रेण कमेण दोआबाधा कंद एहि ऊणुक्कस्सट्ठिदीए पबद्धाए सो अण्णा अणुक्कस्सट्ठिदिवियप्पो | १८० ||
उससे व्यतिरिक्त अर्थात् उत्कृष्ट स्थितिबन्धसे भिन्न अनुत्कृष्ट स्थितिवेदना होती है, यह सूत्र का अर्थ है । वह चूंकि अनेक प्रकारकी है, अतः उसके स्वामी भी अनेक प्रकारके हैं। उनकी प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है-तीन हजार वर्ष आबाधा करके तीस कोड़ा कोड़ि सागरोपम मात्र स्थितिके बांधनेपर उत्कृष्ट स्थिति होती है । फिर अन्य जीवके द्वारा एक समय कम तीस कोड़ाकोड़ि सागरोपम प्रमाण स्थिति के बांधने पर प्रथम अनुत्कृष्ट स्थान होता है । यहांपर उत्कृष्ट स्थितिका प्रमाण संदृष्टिमें दो सौ चालीस (२४०) अंक है । अनुत्कृष्ट उत्कृष्ट स्थितिका प्रमाण दो सौ उनतालीस (२३९) अंक है। उससे अन्य जीवके द्वारा दो समय कम उत्कृष्ट स्थितिके बांधनेपर द्वितीय अनुत्कृष्ट स्थान होता है । उसका प्रमाण यह है-- २३८ । इस क्रमसे आबाधाकाण्डकसे हीन उत्कृष्ट स्थितिके बांधनेपर अन्य अनुत्कृष्ट स्थान होता है । यहां आबाधाकाण्डकका प्रमाण तीस अंक (३०) है । इसको उत्कृष्ट स्थितिमेंसे घटा देनेपर वहांका स्थितिबन्धस्थान इतना होता है- २४०- - ३० = ११० ॥
अब उत्कृष्ट आबाधा एक समय कम हो जाती है, क्योंकि, आबाधाके अन्तिम समयमै प्रथम निषेक निर्जीर्ण हो चुका है। संदृष्टिमें उत्कृष्ट आबाधाका प्रमाण आठ ( ८ ) है । पश्चात् एक समय अधिक आबाधाकाण्डकसे हीन उत्कृष्ट स्थितिके बांधनेपर वह अन्य अनुत्कृष्ट स्थानविकल्प होता है - २४० - ( ३० + १) २०९ | इस क्रमसे दो आबाधाकाण्डकोंसे हीन उत्कृष्ट स्थितिके बांधनेपर वह अन्य अनुत्कृष्ट स्थितिविकल्प होता है — २४० - ६० = १८० । इस प्रकार इसी क्रमसे एक समय कम दो
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१ प्रतिषु ' बंधवदिरित्तो ' इति पाठः ।
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