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________________ १, २, ४, २८. वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्त । |- ६४| | ८| |६४ | १६ ८ / ६४ | ८ | ३२ | ६४ | ३२/ ६४ | ६४ ६४ । एदेहि चदुहि विहाणेहि पादिय समकरणं करिय जवमज्झपमाणेण कदे गुणहाणीए तिण्णिचदुब्भागमेत्तजवमज्झाणि जवमज्झचदुब्भागो च उप्पज्जदि । तस्सेसा संदिट्ठी | ३ ।।।। पुणो बिदियादिगुणहाणिदव्वं पि पढमगुणहाणिदव्वमेत्तमसंत दादूण समीकरणे कदे एदं पि तेत्तियं चेव होदि । । ।। णवरि जहण्णजोगट्ठाणजीवे मोत्तूण विदियजोगट्ठाणजीवप्पहुडि पढमगुणहाणी घेत्तव्वा । एदे दो वि मेलाविदे दिवड्ड. गुणहाणिमेत्तजवमज्झाणि जवमझेदुभागो च उप्पज्जदि । तस्स संदिट्ठी स्थापित कर और इन चार प्रकारों (मूलमें देखिये ) से उसके खंड कर समीकरण करके यवमध्यके प्रमाणसे करनेपर गुणहानिके तीन बटे चार भाग मात्र यवमध्य और यवमध्यका चौथा भाग उत्पन्न होता है। उसकी यह संदृष्टि है (३१)। उदाहरण - यवमध्यकी गुणहानि ४१६, यवमध्य १२८, यहां ४१६ में १२८ का भाग देनेपर ३ यवमध्य और एक यवमध्यका चौथा भाग उत्पन्न होता है । इस प्रकार यवमध्यकी गुणहानिमें कुल ३१ यवमध्य होते हैं। यहां यवमध्यकी गुणहानिके द्रव्यसे तृतीय गुणहानिके अन्तिम तीन स्थानोंका द्रव्य और चौथी गुणहानिके प्रथम स्थानका द्रव्य लिया गया है। फिर द्वितीयादि गुणहानियोंके द्रव्यका भी, इसमें प्रथम गुणहानिके द्रव्य प्रमाण असत् द्रव्य देकर, समीकरण करनेपर यह भी उतना ही होता है (३ )। विशेष इतना है कि जघन्य योगस्थानके जीवोंको छोड़कर द्वितीय योगस्थानके जीवोंसे लेकर प्रथम गुणहानि ग्रहण करना चाहिये । - उदाहरण- द्वितीयादि गुणहानिका द्रव्य ३४४, जो द्रव्य ऊपरसे मिलाया गया है वह ७२; कुल जोड़ ४१६, यहां भी ४१६ में १२८ का भाग देनेपर तीन यवमध्य और एक यवमध्यका चौथा भाग उत्पन्न होता है। यहां जो ७२ संख्या प्रमाण द्रव्य ऊपरसे मिलाया गया है वह प्रथम गुणहानिका द्रव्य है। इसमेंसे जघन्य योगस्थानके जीवोंका प्रमाण १६ घटा दिया गया है । इन दोनोंको ही मिला देनेपर डेढ़ गुणहानि मात्र यवमध्य और एक यवमध्यका द्वितीय भाग उत्पन्न होता है। उसकी संदृष्टि ६१ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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