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६८] . छक्खंडागमे वेषणाखंड
[, २, ४, २८. संपहि जीवजवमज्झस्सुवरि भण्णमाणे दुगुणो पुवभागहारो विरलेदव्वो, अण्णहा बनमन्झपखेवाणुष्पत्तीदो । ण च अवट्टिदभागहारपइज्जाविरोहो वि, जवमज्झस्स हेढुवरिममागसु पुध पुष अवट्टिददाभागहारब्भुवगमादो। एदं विरलिय समखंडं करिय जीवजवमज्झे दिले रूवं पडि पक्व पमाणं होदि । पुणो जवमज्झं पडिरासिय तत्थ एगपक्खेवे अवणिदे तदयंतरजोगट्ठाणजीवपमाणं होदि । तं पडिरासिय बिदियपक्खेवे अवणिदे तदणंतरउवरिमबोगहाणाजीवपमाणं' होदि । एवं णेदव्वं जाव उक्कस्सजोगट्ठाणजीवे ति ।
अब जीवयवमध्यके ऊपरके स्थानोंका कथन करनेपर पूर्व भागहारसे दुगुणे भागहारका विरलन करना चाहिये, क्योंकि, ऐसा किये निजा यवमध्यका प्रक्षेप नहीं बन सकता। दुगुणे भागहारका विरलन करनेसे अवस्थित भागहारकी प्रतिक्षाका विरोध होगा सो भी नहीं है, क्योंकि, यवमध्य के अधस्तन और उपरिम भागोंमें पृथक् पृथक् भवस्थित रूपसे दो भागहार स्वीकार किये गये हैं । इस प्रकार इस दूने भागहारका चिरलन कर समखण्ड करके जीवयवमध्यके देने पर प्रत्येक एकके प्रति प्रक्षेपका प्रमाण प्राप्त होता है। फिर यवमध्यको प्रतिराशि कर उससे एक प्रक्षेपके कम करनेपर इससे आगेके योगस्थानके जीवोंका प्रमाण होता है । उसको प्रतिराशि कर उसमेंसे द्वितीय प्रक्षेपके कम करने पर उससे उपरिम योगस्थानके जीवोंका प्रमाण होता है। इस प्रकार उत्कृष्ट योगस्थानके जीवोंका प्रमाण आने तक ले जाना चाहिये।
विशेषार्थ- पहले जो क्रम बतला आये हैं उससे जीवयवमध्यके आगेका क्रम बदल जाता हैं। यहां भागहारका प्रमाण पूर्वकी अपेक्षा दूना हो जाता है। जीवयवमध्यके पहले प्रत्येक योगस्थानके जीवोंका प्रमाण लानेके लिये भागहारका प्रमाण जगश्रेणिके भसंख्यातवें भाग प्रमाण बतला आये थे । किन्तु यहां वह दूना हो जाता है, अन्यथा यवमध्यके जीवों के आधारसे आगेके प्रक्षेपका प्रमाण नहीं लाया जा सकता है। इसपर यह शंका होती है कि जब सर्वत्र अवस्थित भागहार स्वीकार किया गया है तब फिर यहां उसे दूना कैसे किया जा सकता है । इस शंकाका जो समाधान किया है उसका भाव यह है कि यवमध्यसे पूर्वकी गुणहानियों में सर्वत्र एक भागहार स्वीकार किया गया है और आगेकी गुणहानियों में दूसरा भागहार स्वीकार किया गया है। इसलिये भागहारको अवस्थित मानने में कोई बाधा नहीं आती। फिर भी यहां इतना विशेष समझना चाहिये नियमध्यमें सबसे अधिक जीव होते हैं, इसलिये यवमध्यके आगेकी गणहानियों में सर्वत्र प्रक्षेपको घटाते जाना चाहिये और प्रत्येक गुणहानिमें उसे आधा आधा करते बासा चाहिये। इस प्रकार उत्कृष्ट योगस्थानके जीवोंका प्रमाण आने तक यह क्रम जानना
१ प्रतिषु · जोगदाणं ' इति पाठः।
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