SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १.] छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, २,१, २८. दवट्ठियणयं पडुच्च जोगजवमज्झसण्णिदजीवजवमज्झादो उवरिमअद्धाणम्मि अंतोमुहुत्तमच्छिदो ति किण्ण उच्चदे १ ण, जीवजवमज्झउवरिमअद्धाणम्मि हेट्ठिमअद्धाणादो विसेसा शरीरपर्याप्तिके पूर्ण होने तक एकान्तवृद्धि योगस्थान होते हैं। याद लब्ध्यपर्याप्त जीव होता है तो आयुके अन्तिम तीसरे भागको छोड़कर उपपाद योगके बाद अन्यत्र एकान्तानुवृद्धि योगस्थान होते हैं। इसके बाद शरीरपर्याप्तिके पूर्ण होनेके समयसे लेकर या लब्ध्यपर्याप्तकके अन्तिम तीसरे भागमें परिणाम योगस्थान होते हैं । ये परिणाम योगस्थान द्वीन्द्रिय पर्याप्तके जघन्य योगस्थानोंसे लेकर संशी पंचन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके उत्कृष्ट योगस्थानों तक क्रमसे वृद्धिको लिये हुए होते हैं । इनमें आठ समयवाले योगस्थान सबसे थोड़े होते हैं। इनसे दोनों पार्श्वभागों में स्थित सात समयवाले योगस्थान असंख्यातगुणे होते हैं। इनसे दोनों पार्श्वभागोंमें स्थित छह समयवाले योगस्थान भसंख्यातगुणे होते हैं। इनसे दोनों पार्श्वभागोंमें स्थित पांच समयवाले योगस्थान असंख्यातगुणे होते हैं । इनसे दोनों पार्श्वभागोंमें स्थित चार समयवाले योगस्थान असंस्यातगुणे होते हैं । इनसे तीन समयवाले योगस्थान असंख्यातगुणे होते हैं और इनसे यो समयवाले योगस्थान असंख्यातगुणे होते हैं। ये सब योगस्थान चार, पांच, छह, सात, आठ, सात, छह, पांच, चार, तीन और दो समयवाले होनेसे ग्यारह भागोंमें विभक हैं, अतः समयकी दृष्टिसे इनकी यवाकार रचना हो जाती है। आठ समयवाले योगस्थान मध्यमें रहते हैं । फिर दोनों पार्श्वभागोंमें सात समयवाले योगस्थान प्राप्त होते हैं । फिर दोनों पार्श्वभागोंमें छह समयवाले योगस्थान प्राप्त होते हैं । फिर दोनों पार्श्वभागोंमें पांच समयवाले योगस्थान प्राप्त होते हैं । फिर दोनों पार्श्वभागोंमें चार समयवाले योगस्थान प्राप्त होते हैं । फिर आगेके भागमें क्रमसे तीन समय और दो समयवाले योगस्थान प्राप्त होते हैं । इनमें से आठ समयवाले योगस्थानोंकी यवमध्य संशा है । यवमध्यसे पहलेके योगस्थान थोड़े होते हैं और आगेके योगस्थान असंख्यातगुणे होते हैं। इन आगेके योगस्थानों में संख्यातभागवृद्धि, असंख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणवृद्धि ये चारों वृद्धियां तथा ये ही चारों हानियां सम्भव हैं। इसीसे इन योगस्थानों में उक्त जीवको अन्तर्मुहूर्त काल तक स्थित कराया है, क्योंकि, योगस्थानोंका अन्तर्मुहूर्त काल यही सम्भव है । (देखिये कर्मकाण्ड गा. २१८ आदि) शंका-'जोगजवमझादो-' इस सूत्रका अर्थ कहते समय द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा योगयवमध्य संज्ञावाले जीवयवमध्यसे आगेके स्थानमें अन्तर्मुहूर्त काल तक स्थित रहा, ऐसा क्यों नहीं कहते ? समाधान-नहीं, क्योंकि, जीवयवमध्यका आगेका स्थान पिछले स्थानसे विशेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy