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________________ ४, २, ४, ८ ] वेपणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे पदमीमांसा [ ३५ द्विदीए ऊणियं कम्मट्ठदिमच्छिदो ति सुत्तणिद्देसादो । बादरपुढवीकाइए अच्छंतस्स परिणमणनियमपरूवणा उत्तरसुत्तेहि कीरदे - तत्थ य संसरमाणस्स बहुवा पज्जत्तभवा' थोवा अपज्जतभवा भवंति ॥ ८ ॥ उप्पत्तिवारा भवाः, पज्जत्ताणं भवा पज्जत्तभवा, ते बहुआ । पज्जत्तेसुप्पण्णवारसलागाओ बहुवा त्ति' वुत्तं होदि । के पेक्खिय बहुआ पज्जत्तभवा ? खविदकम्मंसिय-खविदगुणिद-घोलमाणपज्जत्तभवे । अपज्जत्तभवा थोवा । केहिंतो ? खविद-कम्मंसिय-खविद-गुणिद समाधान - यह ' त्रसस्थिति से कम कर्मस्थिति प्रमाण काल तक रहा ' सूत्रके इसी निर्देशसे जाना जाता है । अब बादर पृथिवीकायिकोंमें रहनेवाले जीवके परिणमनके नियमोंकी प्ररूपणा आगे सूत्रों द्वारा की जाती है वहां परिभ्रमण करनेवाले जीवके पर्याप्तभव बहुत और अपर्याप्तभव थोड़े होते हैं ॥ ८ ॥ उत्पत्तिके वारोंका नाम भव है और 'पर्याप्तोंके भव पर्याप्तभव ' कहलाते हैं । वे बहुत हैं । पर्याप्तों में उत्पन्न होनेकी वारशलाकायें बहुत हैं, यह उक्त कथनका तात्पर्य है । शंका — किनकी अपेक्षा पर्याप्तभव बहुत हैं ? समाधान - क्षपितकर्माशिकके क्षपित, गुणित व घोलमान पर्याप्तभवोंकी अपेक्षा बहुत हैं । अपर्याप्तभव थोडे है ? शंका - किनसे थोडे हैं ? समाधान - क्षपितकर्माशिक के क्षपित गुणित व घोलमान अपर्याप्त भवसे थोड़े हैं। १ प्रतिषु भावा ' इति पाठः । 6 ३ प्रतिषु ' पज्ञत्तेसु पण्णवारसगाउ बहुबा वित्ति इति ' पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only २ क. प्र. २-७४. www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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