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________________ ५०४] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, २०८. दोसु वि पासेसु छसमइयाणि जोगट्ठाणाणि दो वि तुल्लाणि असंखेज्जगुणाणि ॥२०८ ॥ दोसु वि पासेसु पंचसमइयाणि जोगट्टाणाणि दो वि तुल्लाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ २०९॥ एदाणि दो वि सुत्ताणि सुगमाणि । दोसु वि पासेसु चदुसमइयाणि जोगट्ठाणाणि दो वि तुल्लाणि असंखेज्जगुणाणि ॥२१०।। उवरि तिसमइयाणि जोगट्टाणाणि असंखेज्जगुणाणि'॥२११॥ एत्थ उवरि ति णिद्देसो किमटुं कदो ? उवरि भण्णमाणतिसमइय-बिसमइयजोगट्ठाणाणि' जवमज्झादो उवरि चेव होंति, हेट्ठा ण होति त्ति जाणावणहूँ । बिसमइयाणि जोगट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥२१२॥ दोनों ही पार्श्वभागोंमें छह समय योग्य योगस्थान दोनों ही तुल्य व उनसे असंख्यातगुणे हैं ॥ २०८॥ दोनों ही पार्श्वभागोंमें पांच समय योग्य योगस्थान दोनों ही तुल्य व उनसे असंख्यातगुणे हैं ॥ २०९॥ ये दोनों ही सूत्र सुगम हैं । दोनों ही पार्श्वभागोमें चार समय योग्य योगस्थान दोनों ही तुल्य व उनसे असंख्यातगुणे हैं ॥ २१० ॥ उनसे तीन समय योग्य उपरिम योगस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ २११ ॥ शंका- यहां उपरि' शब्दका निर्देश किसलिये किया है ? समाधान- आगे कहे जानेवाले तीन समय और दो समय योग्य योगस्थान यवमध्यसे ऊपर ही होते हैं, नीचे नहीं होते; इस बातके शापनार्थ सूत्र में उवरि' शब्दका निर्देश किया है। उनसे दो समय योग्य योगस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ २.१२ ॥ १ अ-आ-काप्रतिषु 'असंखेज्जगुणाणि ' इत्येतत्पदं नोपलभ्यते। २ मप्रतिपाठोऽयम् । अप्रतौ तिसमयनोगहाणा', आ-ताप्रत्योः 'तिसमझ्यजोगट्ठाणाणि', काप्रतौ 'तिसमश्याणि जोगट्ठाणाणि ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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