SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 514
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, २, ४, १९६.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया [४९३ बिदियजोगहाणपमाणेण अवहिरिज्जमाणे विसेसहीणेण कालेण अवहिरिजंति । एवं णेदव्वं जाव पढमदुगुणवड्डि त्ति । पुणो तेण पमाणेण अवहिरिज्जमाणे पुविल्लभागहारादो अद्धमेत्तेण कालेण अवहिरिज्जति । एवं णेदव्वं जाव उक्कस्सजोगट्ठाणेत्ति । पुणो' • उक्कस्सजोगट्ठाणपमाणेण सबजोगट्ठाणाणि केवचिरेण कालेण अवहिरिजंति १ रचिदजोगट्ठाणद्धाणद्धं जोगगुणगारेण खंडिय तत्थ एगखंडे रूवाहियजोगगुणगारेण गुणिदे जं लद्धं तत्तियमेत्तेण कालेण अवहिरिजंति । एत्थ कारणं जाणिय वत्तव्वं । जहण्णजोगट्ठाणप्पहुडि उवरि सव्वत्थ अवहारकाले आणिज्जमाणे भागहारपरिहाणी जाणिदूण कायव्वा । एवं भागहारपरूवणा गदा । पढमजोगट्ठाणफद्दयाणि सव्वजोगट्ठाणफद्दयाणं केवडिओ भागो ? असंखेज्जदिभागो । एवं णेदव्वं जाव उक्कस्सजोगट्ठाणेत्ति, असंखेज्जदिमागत्तणेण विसेसाभावादो । भागाभाग परूवणा गदा । सव्वत्थावाणि जहण्णजोगट्टाणफद्दयाणि । उक्कस्सजोगट्ठाणफद्दयाणि असंखेज्जगुणाणि । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागो, जोगगुणगारो त्ति वुत्तं होदि । द्वितीय योगस्थानके प्रमाणसे अपहृत करने पर सब योगस्थान विशेष हीन कालसे अपहृत होते हैं । इस प्रकार प्रथम दुगुणवृद्धि तक ले जाना चाहिये । पश्चात् उक्त प्रमाणसे अपहृत करनेपर वे पूर्व भागहारकी अपेक्षा अर्ध भाग प्रमाण कालसे अपहृत होते हैं। इस प्रकार उत्कृष्ट योगस्थान तक ले जाना चाहिये । अब उत्कृष्ट योगस्थानके प्रमाणसे सब योगस्थान कितने कालसे अपहृत होते हैं ? रचित योगस्थानके अर्ध भागको योगगुणकारसे खण्डित कर उसमें एक खण्डको रूपाधिक योगगुणकारसे गुणित करनेपर जो प्राप्त हो उतने मात्र कालसे वे अपहृत होते हैं। यहां कारणका कथन जानकर करना चाहिये । जघन्य योगस्थानको आदि लेकर आगे सब जगह अवहारकालको लाते समय भागहारकी हानि जानकर करना चाहिये। इस प्रकार मागहारकी प्ररूपणा समाप्त हुई। प्रथम योगस्थानके स्पर्धक सब योगस्थानोंके स्पर्धकोंके कितने भाग प्रमाण हैं ? वे सब योगस्थान सम्बन्धी स्पर्धकोंके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। इस प्रकार उत्कृष्ट योगस्थान तक ले जाना चाहिये, क्योंकि, असंख्यातवें भागको अपेक्षा वहां और कोई विशेषता नहीं है। भागाभागप्ररूपणा समाप्त हुई। जघन्य योगस्थानके स्पर्धक सबमें स्तोक हैं । उनसे उत्कृष्ट योगस्थानके स्पर्धक असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। , ताप्रती 'पुणो' इत्येतत्पदं नास्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy