________________
छक्खंडागमे वैयणाखंड भावादो । एवं अंतोखिसओजाणियोगहारा पदमीमांसा समत्ता ।
सामित्तं दुविहं जहण्णपदे उक्कस्सपदे ॥ ५॥
...............
ज्ञानावरण
जघन्य
अनादि
विशिष्ट
ओम.
x
x
उत्कृष्ट
x
अनु.
x. x
x
जघन्य
अजघन्य
x
x
x
सादि अनादि
: ::
ध्रुव
:
x
अध्रुव ओज
x
x
:
x
४ :
x
x
युग्म
ओम विशिष्ट नोओ.
x
x
४ :
x
3
झानावरणके उत्कृष्ट आदि पदोंमें उनके ये अवान्तर पद जिस प्रकार बतलाये हैं उसी प्रकार शेष सात कर्मों में भी घटित कर लेना चाहिये । सामान्य पद सर्वत्र तेरह ही हैं, इसलिये उनका अलगसे कोष्ठक नहीं दिया है।
इस प्रकार ओजानुयोगद्वारगर्भित पदमीमांसा समाप्त हुई। स्वामित्व दो प्रकारका है- जपन्य पद रूप और उत्कृष्ट पद रूप ॥५॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org