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________________ ४, २, ४, १८६.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया [४७९ अवणिददव्वाणि मेलाविय पक्खित्ते वि किंचूणछब्भागब्भहियाणि चेव दोरूवाणि गुणगारं होति । एवं पमाणपरूवणा समत्ता । संपहि अप्पाबहुगं वत्तइस्सामो- सव्वत्थोवा पढमाए वग्गणाए अविभागपडिच्छेदा । चरिमाए वग्गणाए अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? सेडीए असंखेज्जदिभागो । अधवा फद्दयसलागाणमसंखेज्जदिभागो । तं जहा- पढमवग्गणायाम ठविय एगवग्गेण गुणिदे पढमवग्गणा होदि । पुणो पढमवग्गणायाम किंचूणण्णोण्णब्भत्थरासिणा खंडिदे तत्थेगखंडं चरिमवग्गणायाम होदि । तम्मि फद्दयसलागगुणिदजहण्णवग्गेण गुणिदे चरिमवग्गणा होदि। ताए पढमवग्गणाए भागे हिदाए किंचूणण्णाणभत्थरासिणा ओवट्टिदफद्दयसलागाओ आगच्छति । अपढम-अचरिमासु वग्गणासु अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? सेडीए असंखेज्जदिभागो । कुदो ? पढमगुणहाणिफद्दयाणमविभागपडिच्छेदेहिंतो चउत्थादिगुणहाणिफद्दयाविभागपडिच्छेदाणं संखेज्जभागहाणि-संखेज्जगुणहाणि-असंखेज्जगुणहाणिसरूवेण अवठ्ठाणाणुवलंभादो। अचरिमासु वग्गणासु अविभागपडिच्छेदा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? पढमवग्गणमेत्तेण । अपढमासु वग्गणासु अविभाग स्थापित कर उसमें पहिलेके घटाये हुए द्रव्योंको मिलाकर प्रक्षिप्त करनेपर भी कुछ कम छठे भागसे अधिक दो रूप ही गुणकार होते हैं । इस प्रकार प्ररूपणा समाप्त हुई। ___अब अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा करते हैं-प्रथम वर्गणामें अविभागप्रतिच्छेद सबसे स्तोक हैं। अन्तिम वर्गणामें उनसे असंख्यातगुणे अविभागप्रतिच्छेद हैं। गुणकार क्या है ? गुणकार जगणिका असंख्यातवां भाग है । अथवा, वह स्पर्धकशलाकाओंके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । यथा--प्रथम वर्गणाके आयामको स्थापित कर उसे एक वर्गसे गुणित करनेपर प्रथम वर्गणा होती है । फिर प्रथम वर्गणाके आयामको कुछ कम अन्योन्याभ्यस्त राशिले खण्डित करनेपर उसमेंसे एक खण्ड प्रमाण अन्तिम वर्गणाका आयाम होता है। उसे स्पर्धकशलाकाओंसे गुणित जघन्य वर्गसे गुणा करनेपर अन्तिम वर्गणा होती है। उसमें प्रथम वर्गणाका भाग देनेपर कुछ कम अन्योन्याभ्यस्त राशिसे अपवर्तित स्पर्धकशलाकायें आती हैं । अप्रथम-अचरम वर्गणाओंमें चरम वर्गणाके अवि. भागप्रतिच्छेदोंसे असंख्यातगुणे अविभागप्रतिच्छेद होते हैं । गुणकार क्या है ? गुणकार जगश्रेणिका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, प्रथम गुणहानि सम्बन्धी स्पर्धकोंके अविभागप्रतिच्छेदोंकी अपेक्षा चतुर्थादि गुणहानियों सम्बन्धी स्पर्धकोंके अविभागप्रतिच्छेदोंका संख्यात भागहानि, संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानि रूपसे अवस्थान पाया जाता है। उनसे अचरम वर्गणाओंमें अविभागप्रतिच्छेद विशेष अधिक हैं। कितने मात्रसे वे आधिक हैं। प्रथम वर्गणाके प्रमाणसे वे अधिक हैं । अप्रथम वर्गणामों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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