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________________ ४७४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ४, १८६. घणगुणिदवग्गणवग्गेण गुणिदे तम्मि तम्मि गुणहाणिम्मि अहियदव्वपमाणं होदि । पुणो एदं अहियदव्वं पुन्विल्लथूलत्तणाणिदसव्वगुणहाणिदब्वेसु अवणिज्जमाणे गुणगारं होदूण द्विददोगुणहाणीयो विसिलेसिय तत्थतणदोरूवेहि अंतिमअंसं गुणिय सरिसच्छेदं कादूणवणिय हेट्ठिमगुणण्णोणब्भत्थरासिणा अंतिमच्छेदे गुणिदे पढमादि जाव चरिमगुणहाणि त्ति ताव दव्वपमाणाणि होति । ताणि सव्वगुणहाणीसु गुणहाणिफदयसलागर्चेणगुणवग्गणवग्गेण गुणिदवग्गणविसेसमेत्ताणि सव्वत्थ सरिसाणि होति । पुणो एदेसिं गुणगाररूवाणि पढमगुणहाणिप्पहुडि जाव चरिमगुणहाणि त्ति ताव चत्तारिरूवादिणवोत्तरकमगदंसाणि छरूवादिदुगणं-दुगुणकमगदच्छेदाणि भवंति | ८| 0 |४|४|९|९|। एदं पढमगुणहाणिप्पहुडि जाव चरिमगुणहाणि त्ति ताव । ।१६ | गुणिज्जमाणं (पुणो एदस्स गुणगाररूवाणि एदाणि |४|१३|२२|३१|४|४९ | ५८ / ६८] ७६ । ८५ । ९४ । १०३ ।। ४४८/९६ १९२/३८४/७६८/१५३६.३०७२ ६१४४/१२२८८ | पुणो एदेसि मेलावणहूँ दोसुत्तगाहा । तं जहा - गुणित करनेपर उस उस गुणहानिमें अधिक द्रव्यका प्रमाण होता है। फिर इस अधिक द्रव्यको पहिले स्थूल रूपसे निकाले हुए सब गुणहानियोंके द्रव्योंमेंसे कम करते समय गुणकार होकर स्थित दो गुणहानियों को विश्लेषित कर वहांके दो रूपोंसे अन्तिम अंशको गुणित करके व समान खण्ड करके उसे कम कर अधस्तन गुणकारकी अन्योन्याभ्यस्त राशिसे अन्तिम अंशको गुणित करनेपर प्रथम गुणहानिसे लेकर अन्तिम गुणहानि पर्यन्त द्रव्यांक प्रमाण प्राप्त होते हैं। वे सब द्रव्यप्रमाण समस्त गुणहानियोमे गुणहानिस्पर्धकशलाकाओके घनसे गुणित वर्गणाके वर्गसे वर्गणाविशेषको गुणित करने पर जो प्राप्त हो उतने मात्र होकर सर्वत्र समान होते हैं। पुनः इनके गुणकारभूत अंक प्रथम गुणहानिसे लेकर अन्तिम गुणहानि तक चार रूपोंको आदि लेकर नौ-नौ अधिक क्रमले जाते हुए अंश तथा छहको आदि लेकर दूने दूने क्रमसे जाते हुए हार स्वरूप होते हैं। प्रथम गुणहानिको लेकर अन्तिम गुणहानि तक यह (मूलमें देखिये) गुणिज्य मान राशि है। इसके गुणकार अंक ये हैं-१, १३, २३, ३१, ४०, ४९, ५८ ५८, १८, ६७ ७६ . ८५. ९४ . १०३ । इनको मिलाने के लिये ये दो सूत्र 322७EZ4 3010 २०७२' ६१४४' १२२८८ । २नका मिलान लिय य दा सूत्र गाथायें इस प्रकार हैं , तापतौ 'तम्मि तम्मि २ गुण-' इति पाठः । २ अ-आ-काप्रतिषु 'ट्ठिदथेविगुणहाणीयो ' इति पाठः । ३ अ-आ-काप्रतिषु 'गुणोण्ण-' इति पाठः। ४ तापतौ 'सलागपु (घ) ण' इति पाठः। ५ प्रतिषु 'छरूवाणि दुगुण' इति पाठः। ६ ताप्रतौ २२] इति पाठः। ४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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