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________________ १६६] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [१, २, ४, १८६ संपहि तदियफद्दयम्मि अवणिज्जमाणअविभागपडिच्छेद भणिस्सामो । तं जहाफद्दयवग्गणसलागवग्गमेत्तदोवग्गणविसेसेहि तिण्णिजहण्णवग्गे गुणिय पुध ठवेदव्वं |३) ० |४४२|| पुणो रूवूणफद्दयवग्गणसलागसंकलणमेत्तवग्गणविसेसेहि | | | तिण्णिजहण्णवग्गे गुणिय पुव्विल्लरासिस्स पस्से ठवेदव्वं |३|४ । एदासिं दोण्हं रासीणं समूहो तदियफद्दयम्मि अवणिज्जमाण २ | अविभागपडिच्छेदाणं पमाणं होदि'। एवं पढमगुणहाणीए फद्दयं पडि इच्छिदफद्दयादो हेट्ठिमफद्दयसलागाहि फद्दयवग्गणवग्गगुणिदमेत्तवग्गणविसेसेहि य फद्दयसलागमेत्तजहण्णवग्गा गुणिदो, पुणो अण्णे वि रूवूणवग्गणसलागसंकलणमेत्तवग्गणविसेसेहि गुणिदफद्दयसलागमेत्तजहण्णवग्गा च, एदाहि दोहि रासीहि ऊणा सव्वफद्दयाणमविभागपडिच्छेदा होति । पुणो एदाओ दो वि पंतीओ पुध पुध मेलाविदे पढमगुणहाणि. पढमपंतीए ऊणअवसेसाविभागपडिच्छेदाणं समासो एत्तिओ होदि |८||४४/९/९/९/। कुदो ? गुणहाणिफद्दयसलागाणं रूवूणाणं दुगुणसंकलणासंकलण-|| अब तृतीय स्पर्धकमें कम किये जानेवाले अविभागप्रतिच्छेदोंको कहते हैं। यथा- स्पर्धककी वर्गणाशलाकाओंके वर्ग मात्र दो वर्गणाधिशेषोंसे तीन जघन्य वर्गीको गुणित कर पृथक् स्थापित करना चाहिये ( मूलमें देखिये )। फिर एक कम स्पर्धक-वर्गणाशलाकासंकलनका जितना प्रमाण हो उतने मात्र वर्गणा. विशेषोंसे तीन जघन्य वर्गोंको गुणित कर पूर्व राशिके पासमें स्थापित करना चाहिये (मूलमें देखिये) । इन दोनों राशियोंका समूह तृतीय स्पर्धकमें कम किये जानेवाले योगाविभागप्रतिच्छेदोंका प्रमाण होता है । इस प्रकार प्रथम गुणहानिके प्रत्येक स्पर्धकमें, विवक्षित स्पर्धकके नीचे की स्पर्धकशलाकाओं के द्वारा तथा स्पर्धक सम्बन्धी वर्गणाओंके वर्गके द्वारा गुणित वर्गणाविशेषोंका जितना प्रमाण हो उतने वर्गणाविशेषोंसे स्पर्धकशालाका मात्र जघन्य वर्गीको गुणित करे, फिर एक कम वर्गणाशलाकासंकलनाका जितना प्रमाण हो उतने वर्गणाविशेषोंसे स्पर्धकशलाका मात्र अन्य भी जघन्य वर्गीको गुणित करे, इन दोनों राशियोंसे रहित समस्त स्पर्धकोंके अविभागप्रतिच्छेद होते हैं। फिर इन दोनों ही पंक्तियोंको पृथक् पृथक् मिलानेपर प्रथम गुणहानिकी प्रथम पंक्तिसे हीन शेष अविभागप्रतिच्छेदोंका जोड़ इतना होता है (मूलमें देखिये )। कारण कि वे एक कम गुणहानिस्पर्धकशलाकाओंकी दूनी संकलनालंकलनासे गुणित स्पर्धकवर्गणाशलाकाओंके .......................... पुनः जघन्यवर्गमात्रविशेषाणां ... .... रूपनि कस्पर्धकवर्गणाशलाकागाछसंकलनं त्रिगणित व वि ।।३ पुनर्जघन्यवर्गमात्रविशेष:-एकस्पर्धकवर्गणाशलाकावर्गेण रूपनगच्छसंकलनेन। द्विगुणेन च।।२ गणितः व वि४ । ४ । ३ । २ एतौ द्वौ राशी तृतीयस्पर्धकऋणम् । गो. क. (जी.प्र.) २२९. २ मप्रतिपाठोऽयम् । अप्रती त्रुटितोऽत्र पाठः, आ-काप्रत्याः । -सलागमेतं जहण्णवग्गं गुणिदा', ताप्रती 'सलागमेतं जहण्णवगं गुणिदं' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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